Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak Author(s): Diptipragnashreeji Publisher: ZZ_Anusandhan View full book textPage 1
________________ श्रीब्रह्म विरचित उपदेशकुशलकुलक सं. सा. दीप्तिप्रज्ञाश्री धर्मनो उपदेश केवा पात्रने आपवो अने कोने न आपवो ते विषयनुं प्रतिपादन करनारी आ लघु रचना गुजराती भाषामां चोपईनी ढाळमां श्रीब्रह्मनामना कविए रचेली छे. अयोग्य आत्माने हितकारक उपदेश आपवानां केवां परिणाम आवे अने ते केवो निष्फल जाय ते वात समजाववा माटे पहेली १४ कडीमा लौकिक दृष्टान्तो तथा १५ थी २७ कडीओमां जैन शास्त्रीय दृष्टान्तो समजाव्यां छे, तथा तेवा जीवोने भारेकर्मी कह्या छे. २८मी गाथामा हलुकर्मी जीवोनां नामो छे, अने २९मी गाथामां पर्षदानी परख करीने धर्म-कथन करवा योग्य छे एवं सूचन आचारांगसूत्र - नन्दीसूत्र जेवां आगमोना हवाला साधे जणाव्युं छे. उपदेशकुशल कुलकनी आ प्रत ला. द. विद्यामन्दिरना ग्रन्थागारमां ला. द. भे. सू. १४६६३ ए क्रमांके नोंथायेली छे. त्यांना संचालकोए २ पानांनी आ प्रतनो उपयोग करवा दीधो ते बदल तेमनी आभार मानुं छं. प्रतनुं मूळ लखाण पूरुं थयुं पछी एक गुजराती सुभाषित रूपे चोपई छे, ते यथावत् अत्रे आपवामां आवी छे. परन्तु ते पछी बीजा पत्रनी B. साईडमां, लेखके स्वहस्ते एक ऐतिहासिक गणाय तेवी पोताना जीवनमां बनेली घटनानुं संक्षिप्त वर्णन गुजरातीमां ज आलेख्युं छे, ते पण परिशिष्टरूपे ज आ साथे मूकेल छे. कुलकनी नकल ऊतार्या पछी आगळनुं लखाण जोईने 'शुं हशे' तेवा कुतूहलथी ते उकेलवानी महेनत करतां आ ऐतिहासिक वात सांपडी छे. ए लखाण तथा कुलकना लखाणना अक्षरो एक सरखा छे, तेथी आ प्रति सं. १६८२मां लखाई हशे तेम लाग्युं छे. कुलकना कर्ता श्रीब्रह्म नामना साधुमहाराज छे, अने प्रतना लेखक लाल.... एवा नामना छे. ते लेखकनुं नाम त्रुटी गयुं होवाथी उकेली शकातुं नथी. हवे पेली ऐतिहासिक वात अंगे- सं. १६८२ना फागण वदि ६ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9