Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 5
________________ June-2003 नल फीटी सेलडी न होवइ ईख तइं जउ वाधइ संगि दूध गुलई जउ लीब सीचाइ तर मीठउ न वि थाइ प्रसंग | १२| तिम गुरु व. । खीर सर पमुखि न हुवइ अमृत काच कमायउ रतन न होइ 'खारउ न टलइ समुद्र नदीयइ मोटइ वडि फल नीरस जोइ | १३ | तिम गु. 1 माथइ मणि निलु वहइ भुयंगम तउ हइ ते नवि निरविष हुंति राम तणी सेवा करइ हणमंत लंगोटी अधिकुठं न लहंति | १४ | तिम गुरु. । इम लोकिक संबंध विचारी लोकोत्तरनी सुणजो वात चित्र ब्रह्मदत्त समजाव्यउ विरति तणी नवि आणी धात | १५ || तिभ गुरु । महावीरनउ सीस जमाली तिहनइ नवि लागउ उपदेस । कालगसूरिउ कपिला दासी गोसालउ पामस्यइ क्लेश | १६ | तिम गुरु । विष्णुकुमरना वचन सुणीनई नमुचि न मानी कांइ सीख मारणहार उदायी नृपनु बार वरस लगि पालइ दीख | १७| तिम गुरु । Jain Education International For Private & Personal Use Only 83 www.jainelibrary.org

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