Book Title: Brammha Virachit Updeshkushalkulak
Author(s): Diptipragnashreeji
Publisher: ZZ_Anusandhan

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Page 6
________________ 84 अनुसंधान-२४ सीस पंचसय केरउ नायक अंगारमरदक नामि सूरि श्रावकि परख्यउ अभव्य दया विणु निरगुण जाणी कीधउ दूरि ।१८। तिम गुरु. । महाशतक श्रावकनी घरणी नामि रेवती निरगुण नारि । परदेशी घरि सूरीकंता कर्यउ कंतनइं विष संचार ।१९। तिम गुरु. । संवेगी सावधाचारिज सूत्र विरुध तिणि काउ विचार । नागिल बंधवि बहु समजावीउ सुमतिइं कुगुरु न त्यज़्या लगार ।२०। तिम गुरु. । सीलसनाह रिषिइं प्रतिबोधी रुषीय नवि काढ्यउ साल । वरस पंचास तपइ तप लखणा तसु फल न थयउं एकइ वाल ।२१। तिम गुरु. । ईसरनइ मनि धरम न भेद्यउ रजा महासतीनई थ्यउ रोग । फासूजलथी काया विसणइ ईम भामइ घाल्यउ बहुलोग ।२२। तिम गुरु. । पालक कुमरि नेमि जइ वंद्या कंडरीकई पाल्यउं चारित्र कृष्ण साथि कीयउं वीरइ वंदण फलई फेर अति थयउ विचित्र ।२३। तिम गुरु. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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