Book Title: Brahamacharya Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 6
________________ हुआ, सना गया और दलदल में गहरा उतरा फिर भी उसमें से बाहर निकलने का मन नहीं होता, यह भी एक आश्चर्य है न? जो सचमुच इस कीचड़ से बाहर निकलना चाहते हैं, पर मार्ग नहीं मिलने के कारण फँस गए हैं; ऐसे लोग कि जिन्हें छूटने की ही एकमात्र अदम्य इच्छा है, उनके लिए तो ज्ञानी पुरुष का यह दर्शन एक नयी ही दृष्टि प्रदान करके सभी बंधनों में से छुड़वानेवाला बन जाता है। मन-वचन काया की सभी संगी क्रियाओं में बिलकुल असंगता के अनुभव का प्रमाण अक्रम विज्ञान प्राप्त करनेवाले विवाहितों ने सिद्ध किया है। गृहस्थ भी मोक्षमार्ग पाकर आत्यंतिक कल्याण साध सकते हैं। 'गृहस्थाश्रम में मोक्ष !' यह विरोधाभासी प्रतीत होता है फिर भी सैद्धांतिक विज्ञान के द्वारा गृहस्थों ने भी इस मार्ग को प्राप्त किया है, यह हक़ीकत प्रमाणभूत रूप से साकार हुई है। 'घर-गृहस्थी मोक्षमार्ग में बाधक नहीं है' इसका प्रमाण तो होना चाहिए न? उस प्रमाण को प्रकाशित करनेवाली वाणी उत्तरार्ध के खंड : १ में समाविष्ट की गई है। 'ज्ञानी पुरुष' के माध्यम से 'स्वरूपज्ञान' पाए हुए परिणीतों के लिए, कि जो विषय विकार परिणाम और आत्म परिणाम की सीमा रेखा पर जागृति के पुरुषार्थ में हैं, उन्हें ज्ञानी पुरुष की विज्ञानमय वाणी के द्वारा विषय के जोखिमों के सामने सतत जागृति, विषय के सामने खेद, खेद और खेद और प्रतिक्रमण रूपी पुरुषार्थ, आकर्षण रूपी जलाशय के घाट पर से बिना डूबे बाहर निकल जाने की जागृति देनेवाली समझ के सिद्धांतों कि जिनमें, 'आत्मा का सूक्ष्मतम स्वरूप' उसका 'अकर्ता अभोक्ता स्वभाव' और 'विकार परिणाम किसका?' 'विषय का भोक्ता कौन?' और 'भोगने का सिर पर लेनेवाला कौन?' इन सभी रहस्यों का हल कि जो कहीं भी बताया नहीं गया है, वह यहाँ सादी, सरल और हृदय में उतर जाए ऐसी शैली में प्रस्तुत हुआ है। यह समझ जरा-सी भी शर्त चूक होने पर सोने की कटारी जैसी बन जाती है। उसके जोखिम और निर्भयता प्रकट करती वाणी उत्तरार्ध के खंड : २ में प्रस्तुत की गई है। सर्व संयोगों से अप्रतिबद्ध रूप से विचरते, महामुक्त दशा का 9 आस्वाद लेते ज्ञानी पुरुष ने कैसा विज्ञान देखा! संसार के लोगों ने मीठी मान्यता से विषय में सुख का आस्वाद लिया, उनकी दृष्टि किस तरह विकसित हो कि विषय संबंधी सभी विपरीत मान्यताओं से परे होकर महा मुक्तदशा के मूल कारण स्वरूप ऐसे, 'भाव ब्रह्मचर्य' का वास्तविक स्वरूप समझ में गहराई से 'फिट' हो जाए, विषय मुक्ति के लिए कर्तापन की सारी भ्रांतियाँ टूटें और ज्ञानी पुरुष ने खुद जो देखा है, जाना है और अनुभव किया है, उस वैज्ञानिक 'अक्रम मार्ग' का ब्रह्मचर्य संबंधी अद्भुत रहस्य इस ग्रंथ में विस्फोटित हुआ है ! इस संसार के मूल को जड़ से उखाड़नेवाला, आत्मा की अनंत समाधि में रमणता करानेवाला, निग्रंथ वीतराग दशा की प्राप्ति करानेवाला, वीतरागों ने प्राप्त कर के अन्यों को बोध दिया, वह अखंड त्रियोगी शुद्ध ब्रह्मचर्य, निश्चय ही मोक्ष की प्राप्ति करानेवाला है! ऐसे दुषमकाल में अक्रम विज्ञान की उपलब्धि होने से आजीवन मन-वचन-काया से शुद्ध ब्रह्मचर्य की रक्षा हुई, उसे एकावतारी पद निश्चय ही प्राप्त हो ऐसा है । अंत में, ऐसे दुषमकाल में कि जहाँ सारे संसार में वातावरण ही विषयाग्नि का फैल गया है, ऐसे संयोगों में ब्रह्मचर्य संबंधी 'प्रकट विज्ञान' को स्पर्श करके निकली हुई 'ज्ञानी पुरुष' की अद्भुत वाणी को संकलित करके, विषय-मोह से छूटकर, ब्रह्मचर्य की साधना में रहकर, अखंड शुद्ध ब्रह्मचर्य के पालनार्थ, सुज्ञ वाचकों के हाथों में यह 'समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य' ग्रंथ को संक्षिप्त स्वरूप में प्रस्तुत किया गया है। विषय संबंधी जोखिमों से छूटने हेतु, फिर भी गृहस्थी में रहकर सर्व व्यवहार निर्भयता से पूरा करने के लिए और मोक्षमार्ग निरंतराय रूप से वर्तना (अनुभव) में आए, उसके लिए 'जैसी है वैसी' वास्तविकता प्रस्तुत करते हुए, सोने की कटारी स्वरूप कही गई 'समझ' को अल्पमात्र भी विपरीतता की ओर नहीं ले जाकर, सम्यक् प्रकार से उपयोग की जाए, ऐसी प्रत्येक सुज्ञ वाचक को अत्यंत भावपूर्ण विनति है। मोक्षमार्ग की यथायोग्य पूर्णाहुति हेतु इस पुस्तक का उपयोगपूर्वक आराधन करें यही अभ्यर्थना ! - डॉ. नीरुबहन अमीन के जय सच्चिदानंद 10Page Navigation
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