Book Title: Brahamacharya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 19
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य २३ कुएँ में गिरना ही नहीं है ऐसा निश्चय है, वह चार दिनों से सोया नहीं हो और उसे कुएँ के किनारे पर बिठाएँ फिर भी नहीं सोएगा वहाँ । आपका संपूर्ण ब्रह्मचर्य पालन का निश्चय और हमारी आज्ञा, दोनों मिलकर अचूक कार्य सिद्धि होगी ही, यदि भीतर में निश्चय जरा-सा भी इधर-उधर नहीं हुआ तो हमारी आज्ञा तो वह जहाँ जाएगा वहाँ मार्गदर्शन करेगी और हमें जरा भी प्रतिज्ञा नहीं छोड़नी चाहिए। विषय का विचार आए तो आधे घंटे तक धोते रहना कि अभी तक क्यों विचार आता है ? और आँख तो किसी के सामने मिलाना ही नहीं। जिसे ब्रह्मचर्य पालना है उसे आँख तो मिलानी ही नहीं। किसी स्त्री को यदि हाथ यों ही छू गया हो तो भी निश्चय को डिगा दे। वे परमाणु रात को सोने भी नहीं दें। इसलिए स्पर्श तो होना ही नहीं चाहिए और दृष्टि बचाएँ तो फिर निश्चय डिगेगा नहीं । प्रश्नकर्ता: किसी का ब्रह्मचर्य का निश्चय अस्थिर हो तो क्या वह उसकी पूर्व भावना ऐसी होगी, इसलिए? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं, वह निश्चय ही नहीं है उसका। यह पहले का प्रोजेक्ट नहीं है और यह जो निश्चय किया है, वह लोगों का देखकर किया है। यह केवल अनुकरण है इसलिए अस्थिर हुआ करता है। इसके बजाय शादी कर ले न भैया, क्या नुकसान होनेवाला है? कोई लड़की ठिकाने लग जाएगी! ब्रह्मचर्य में अपवाद रखा जाए ऐसी वस्तु नहीं है, क्योंकि मनुष्य का मन पोल ढूँढता है । किसी जगह ज़रा सा भी छिद्र हो तो मन उसे बड़ा कर देता है। प्रश्नकर्ता : यह पोल ढूँढ निकालते है, उसमें कौन-सी वृत्ति काम करती है? दादाश्री : वह मन ही काम करता है, वृत्ति नहीं। मन का स्वभाव ही ऐसा है पोल ढूँढने का । २४ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य प्रश्नकर्ता: मन पोल मारता हो तो उसे कैसे रोकें? दादाश्री : निश्चय से । निश्चय हो तो फिर वह पोल मारेगा ही कैसे ? हमारा निश्चय है, तो वह पोल मारेगा ही नहीं। जिसे 'मांसाहार नहीं करना' ऐसा निश्चय है, वह मांसाहार नहीं ही करता । प्रश्नकर्ता : अर्थात् प्रत्येक विषय में निश्चय कर लेना ? दादाश्री निश्चय से ही सारा कार्य होता है। प्रश्नकर्ता: आत्मा प्राप्त करने के पश्चात् निश्चय बल रखना पड़ता है ? दादाश्री : खुद को रखना ही नहीं है, हमें तो 'चंद्रेश' से कहना है कि आप ठीक से निश्चय रखो। इसके बारे में प्रश्न पूछने हों तो वह पोल ढूँढता है । इसलिए ये प्रश्न पूछनें पड़ें तब उसे चुप करा देना, 'गेट आउट' कह देना, ताकि वह चुप हो जाए। 'गेट आउट' कहते ही सब भाग जाते है। तुझे क्या होता है? प्रश्नकर्ता: दिन में ऐसा एविडन्स (संयोग ) मिले तो विषय की एकाध गाँठ फूटती है, पर फिर तुरंत ऐसे थ्री विज़न से देख लेता हूँ। दादाश्री : नदी में तो एक ही बार डूबा तो मर जाएगा कि रोज़रोज़ डूबे तो मरेगा? नदी में एक बार ही डूब मरेगा, फिर कोई हर्ज है? नदी का कोई नुकसान होगा क्या? शास्त्रकारों ने तो एक ही बार के अब्रह्मचर्य को 'मृत्यु' कहा है। मर जाना मगर अब्रह्मचर्य मत होने देना । कर्म का उदय आए और जागृति नहीं रहती हो तो तब ज्ञान के वाक्य ऊँची आवाज़ में बोलकर जागृति लाए और कर्मों का सामना करे वह 'पराक्रम' कहलाता है। स्व- वीर्य को स्फुरायमान करे, वह पराक्रम है। पराक्रम के सामने किसी की ताकत नहीं है।

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