Book Title: Brahamacharya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 48
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य ८२ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य उन दिनों में पुरुष कभी स्त्री (पत्नी) के साथ एक बिछौने में नहीं सोता था। उन दिनों कहावत थी कि सारी रात स्त्री के साथ सो जाए तो वह स्त्री हो जाए। उसके पर्याय असर करते हैं। इसलिए कोई ऐसा नहीं करता था। यह तो किसी अक्लमंद की खोज है, इसलिए डबल बेड बिकते चले जा रहे हैं ! इसलिए प्रजा डाउन हो गई। डाउन होने (नीचे गिरने) में फ़ायदा क्या हुआ? उन दिनों के जो तिरस्कार थे वे सब चले गए। अब डाउन हुएँ को चढ़ाने में देर नहीं लगेगी। अरे, हिन्दुस्तान में कही डबल बेड होते होंगे? किस प्रकार के जानवर (जैसे लोग) हैं? हिन्दुस्तान के स्त्री-पुरुष कभी एक रूम में होते ही नहीं थे! हमेशा अलग रूमों मे रहते थे। उसके बजाय यह आज देखिए तो सही! आजकल तो ये बाप ही बेडरूम बनवा देता है. डबल बेडवाले! तो ये बच्चे समझ गए कि यह दुनिया इसी प्रणाली से चली आ रही है। हमने यह सब देखा है। आई नहीं है। और पहले विषय की संगत के कारण टकराव होता था थोड़ाबहुत। किन्तु जब तक विषय का डंक है तब तक वह नहीं जाता। उस डंक से मुक्त हों तब जाता है। हमारा खुद का अनुभव बतलाते हैं। यह विज्ञान तो देखिए ! संसार के साथ झगडे ही बंद हो जाएँ। पत्नी के साथ तो झगड़ा नहीं, पर सारे संसार के साथ झगड़े समाप्त हो जाएँ। यह विज्ञान ही ऐसा है और झगड़े बंद हुए तो छूट गए। विषय के प्रति घृणा उत्पन्न हो तभी विषय बंद हो। वर्ना विषय कैसे बंद होगा? ७. विषय वह पाशवता ही! हमारे समय की प्रजा एक बात में बहुत अच्छी थी। विषय का विचार नहीं था। किसी स्त्री की ओर कुदृष्टि नहीं थी। कुछ लोग वैसे होते थे, सौ में से पाँच-सात लोग। वे केवल विधवाओं को ही खोज निकालते थे, दूसरा कुछ नहीं। जिस घर में कोई (पुरुष) रहता नहीं हो वहाँ। विधवा यानी बिना पति का घर, ऐसा कहलाता था। हम चौदह-पंद्रह साल के हुए तब तक लड़कियाँ देखें तो 'बहन' कहते थे, बहत दर का रिश्ता हो तो भी। वह वातावरण ही ऐसा था क्योंकि बचपन में दस-ग्यारह साल की उम्र तक तो दिगंबर अवस्था में घूमते थे। विषय का विचार ही नहीं आता था, इसलिए झंझट ही नहीं थी। तब, विषय के बारे में जागृति ही नहीं थी। प्रश्नकर्ता : समाज का एक प्रकार का प्रेशर (दबाव) था, इसलिए? दादाश्री : नहीं, समाज का प्रेशर नहीं। माता-पिता की वृत्ति, संस्कार ! तीन साल के बच्चे को यह मालूम नहीं होता था कि मेरे मातापिता का ऐसा कोई संबंध है ! इतनी अच्छी सीक्रेसी (गुप्तता) होती थी! और ऐसा हो, उस दिन बच्चे अलग रूम में सोते थे, ऐसे माता-पिता के संस्कार थे। अभी तो यहाँ बेडरूम और वहाँ बेडरूम। ऊपर से डबल बेड होते हैं न? इन स्त्रियों का संग मनुष्य यदि पंद्रह दिनों के लिए छोड़ दे, पंद्रह दिन दूर रहे, तो भगवान जैसा हो जाए! एकांत शैयासन अर्थात् क्या, कि शैया में कोई साथ में नहीं और आसन में भी कोई साथ में नहीं। संयोगी 'फाइलों' का किसी तरह का स्पर्श नहीं। शास्त्रकार तो यहाँ तक मानते थे कि जिस आसन पर परजाति बैठी, उस आसन पर तू बैठेगा तो तुझे उसका स्पर्श होगा, विचार आएँगे। प्रश्नकर्ता : विषय दोष से जो कर्मबंधन होता है, उसका स्वरूप कैसा होता है? दादाश्री : जानवर के स्वरूप जैसा। विषय पद ही जानवर पद है। पहले तो हिन्दुस्तान में निर्विषय-विषय था अर्थात् एक पुत्रदान के लिए ही विषय था। प्रश्नकर्ता : आप ब्रह्मचर्य पर अधिक भार देते हैं और अब्रह्मचर्य के प्रति तिरस्कार दिखाते हैं किन्तु ऐसा करें तो सृष्टि पर से मनुष्यों की

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