Book Title: Brahamacharya
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 52
________________ समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य इसलिए सामने दावा दायर नहीं करते। प्रश्नकर्ता : विषय राग से भोगते हैं या द्वेष से? दादाश्री : राग से। उस राग में से द्वेष उत्पन्न होता है। प्रश्नकर्ता : द्वेष के परिणाम उत्पन्न हो तो उलटे कर्म ज्यादा बँधते हैं न? ९० समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य में उनकी पोटली खोलकर देखा तो क्या पाया कि एक पुस्तक के अंदर सोने की गिन्नी रखी हुई पाई। वह उसने निकाल ली और लेकर चला गया। फिर जब महाराज ने पोटली खोली तो गिन्नी गायब थी। गिन्नी की बहुत खोज की मगर नहीं मिली। दूसरे दिन से महाराज ने व्याख्यान में लोभ की बात करनी शुरू कर दी कि लोभ नहीं करना चाहिए। अब आप यदि विषय के संबंध में बोलने लगें तो आपकी वह लाइन होगी तो भी टूट जाएगी, क्योंकि आप मन के विरोधी हो गए। मन की वोटिंग अलग और आपकी वोटिंग अलग हो गई। मन समझ जाएगा कि 'ये हमारे विरोधी हो गए, अब हमारा वोट नहीं चलेगा।' पर भीतर कपट है इसलिए लोग बोल नहीं पाते और ऐसा बोलना इतना आसान भी नहीं है न! दादाश्री : निरा बैर ही बँधता है। जिसे ज्ञान नहीं हो, उसे पसंद हो तब भी कर्म बँधते हैं और पसंद न हो तब भी कर्म बँधते हैं और जिसे ज्ञान हो तो उसे किसी प्रकार के कर्म बँधते नहीं है। इसलिए जहाँ-जहाँ जो-जो व्यक्ति पर हमारा मन उलझता है उस व्यक्ति के भीतर जो शुद्धात्मा है वही हमें छुड़वानेवाला है। इसलिए उनसे माँग करना कि मुझे इस अब्रह्मचर्य विषय से मुक्त कीजिए। दूसरी सभी जगहों पर यों ही छूटने के लिए प्रयास करेंगे वह व्यर्थ जाएगा। उसी व्यक्ति के शुद्धात्मा हमें इस विषय से छुड़वानेवाले हैं। विषय आसक्ति से उत्पन्न होते हैं और फिर उनमें से विकर्षण होता है। विकर्षण होने पर बैर बँधता है और बैर के 'फाउन्डेशन' पर यह संसार खड़ा रहा है। ऐसा है न, इस अवलंबन का हमने जितना सुख लिया वह सब उधार लिया गया सुख है, 'लोन' (ऋण) पर। और 'लोन' यानी 'रीपे' (चूकते) करना पड़ता है। जब 'लोन' 'रीपे' हो जाए, फिर आपको कोई झंझट नहीं रहती। ४. विषय भोग, नहीं निकाली एक महाराज थे, वे व्याख्यान में विषय के बारे में बहुत कुछ बोलते, पर लोभ की बात आने पर कुछ नहीं कहते थे। कोई विचक्षण श्रोता को हुआ कि ये लोभ की बात कभी क्यों नहीं करते? सब बातें कहते हैं, विषय के बारे में भी बोलते हैं। फिर वह उन महाराज के पास गया और अकेले प्रश्नकर्ता : कई ऐसा समझते हैं कि 'अक्रम' में ब्रह्मचर्य का कोई महत्त्व ही नहीं है। वह तो डिस्चार्ज ही है न? दादाश्री : अक्रम का ऐसा अर्थ होता ही नहीं है। ऐसा अर्थ निकालनेवाला 'अक्रम मार्ग' समझा ही नहीं है। यदि समझा होता तो मुझे उसे विषय के संबंध में अलग से कहने की ज़रूरत ही नहीं रहती। अक्रम मार्ग यानी क्या कि डिस्चार्ज को ही डिस्चार्ज माना जाता है। पर इन लोगों के डिस्चार्ज ही नहीं है। यह तो अभी लालच हैं अंदर। यह तो सब राजीखुशी से करते हैं। डिस्चार्ज को कोई समझा है? ५. संसार वृक्ष का मूल, विषय इस दुनिया का सारा आधार पाँच विषयों के ऊपर ही है। जिसे विषय नहीं, उसे टकराव नहीं। प्रश्नकर्ता : विषय और कषाय, इन दोनों में मूलत: फर्क क्या है? दादाश्री : कषाय अगले जन्म का कारण है और विषय पिछले जन्म का परिणाम है। इन दोनों में भारी अंतर है।

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