Book Title: Bhavna Sudhare Janmo Janam Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 5
________________ संपादकीय कईओं ने तो पूर्व में नौ कलमों जैसी ही भावना की थी, जो आज के अनुसंधान में परिणमित होकर तुरंत ही वर्तमान वर्तन में चरितार्थ हो जाती सुबह से लेकर शाम तक घर में या बाहर, लोगों के मुँह से ऐसा सुनने में आता है कि हम ऐसा नहीं करना चाहते हैं फिर भी ऐसा हो जाता है। ऐसा करना चाहते हैं मगर ऐसा नहीं होता। भावना प्रबल है. पक्का निश्चय है, प्रयत्न भी करते हैं, फिर भी नहीं होता है। सभी धर्मोपदेशकों की साधकों के लिए हमेशा यह शिकायत रहती है कि हम जो कहते हैं, उसको आप आत्मसात् नहीं करते हैं। श्रोता भी हताश होकर अकुलाते हैं कि धर्म संबंधी इतना कुछ करने पर भी हमारे वर्तन में क्यों नहीं आता? इसका रहस्य क्या है? कहाँ रुकावट है? किस प्रकार इस भूल का निवारण हो सकता है? परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) ने इस काल के मनुष्यों की कैपेसिटी (क्षमता) को देखकर, उनकी योग्यतानुसार इसका हल एक नये ही अभिगम से, संपूर्ण वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है। दादाश्री ने वैज्ञानिक तरीके से स्पष्टीकरण करते कहा है कि वर्तन तो परिणाम है, इफेक्ट है और भाव वह कारण है, कॉज है। परिणाम में सीधे ही परिवर्तन नहीं लाया जा सकता है। वह भी उसकी वैज्ञानिक रीति के अनुसार ही लाया जा सकता है। कारण बदलने पर परिणाम अपने आप ही बदल जाता है। कारण बदलने के लिए अब इस जन्म में नये सिरे से भाव बदलिए। उस भाव परिवर्तन के लिए दादाश्री ने नौ कलमों के अनुसार भावना करना सिखाया है। सभी शास्त्र जो उपदेश करते हैं, जिसका कोई परिणाम नहीं आता है, उसका सारांश नौ कलमों के द्वारा दादाश्री ने आमूल परिवर्तन की चाबी के रूप में दे दिया है। जिसका अनुसरण करके लाखों लोगों ने इस जीवन को तो सही मगर आनेवाले जन्मों को भी सुधार लिया है। वास्तव में इस जन्म में परिवर्तन नहीं होता है पर इन नौ कलमों की भावना करने से भीतर में नये कारण मूल से बदल जाते हैं और जबरदस्त अंतर शांति का अनुभव होता है। अन्य के दोषों को देखना बंद हो जाता है, जो परम शांति प्रदान करने का परम कारण बन जाता है। और उसमें भी __ कोई भी सिद्धि प्राप्त करनी हो तो उसके लिए केवल खुद के अंदर विद्यमान भगवान के पास शक्तियाँ बार-बार माँगनी चाहिए। जो निश्चित रूप से फल देंगी ही। दादाश्री अपने विषय में कहते हैं कि, 'हमने इन नौ कलमों का आजीवन पालन किया है, उसकी यह पूँजी है। अर्थात् यह हमारा रोज़मर्रा का माल (अनुभव ज्ञान) है, जो बाहर जाहिर किया है। मैं ने अपने भीतर ये नौ कलमें, जो चालीस-चालीस सालों से निरंतर चलती रहीं हैं, उन्हें आखिरकार लोककल्याण हेतु जाहिर किया है।' कई साधकों को यह मान्यता दृढ़ हो जाती है कि मैं इन नौ कलमों की सारी बातें जानता हूँ और मुझे ऐसा ही रहता है, मगर उनसे पूछने पर कि आपके द्वारा किसी को दुःख होता है क्या? घर के या नज़दीकी रिश्तेदारों से पूछने पर वे 'हाँ' कहते हैं। उसका अर्थ यही होता है कि वे सही मानों में नहीं समझें हैं। ऐसा समझा हुआ काम नहीं आता है। असल में तो ज्ञानी पुरुष ने अपने जीवन में जो सिद्ध किया हो, वह अनुभवगम्य वाणी के द्वारा प्रदान किया गया होने के कारण क्रियाकारी होता है। अर्थात् वह भावना ज्ञानी पुरुष द्वारा दी गई डिज़ाइन (योजना) के अनुसार होनी चाहिए तभी काम देंगी और मोक्षमार्ग पर तेजी से प्रगति करायेंगी। और अंतत: ऐसा परिणाम दिलायेंगी कि खुद से किसी भी जीव को किंचित्मात्र दुःख नहीं हो, इतना ही नहीं पर नौ कलमों की प्रतिदिन भावना करने पर कितने ही दोष धुल जाते हैं और हम मोक्षमार्ग पर आगे बढ़ पाते हैं। - डॉ. नीरुबहन अमीनPage Navigation
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