Book Title: Bhavna Sudhare Janmo Janam
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 12
________________ भावना से सुधरे जन्मोजन्म १३ १४ भावना से सुधरे जन्मोजन्म मनुष्य के हाथ में है। इस अहंकार द्वारा सात से गुणा किया हो तो सात से भाग देना तब निःशेष होगा। वह कहेगा न कि, 'क्या देखकर इस ओर चल पड़े? अहमदाबाद इस ओर होता होगा कहीं?' तब वह लौट भी आये मगर अपराधी तो लौटेगा भी नहीं और आगे भी नहीं बढ़ेगा। विराधनावाला तो उलटा चलता है इसलिए गिर पड़े न! प्रश्नकर्ता : लेकिन विराधनावाले को लौट के आने का मौका तो है न? दादाश्री : हाँ, लौट के आने का मौका तो है! प्रश्नकर्ता : अपराधवाले को लौट आने का मौका है क्या? दादाश्री : वह तो लौट भी नहीं सकता और आगे भी नहीं बढ़ सकता। उसकी कोई कक्षा ही नहीं है। आगे बढ़े नहीं और पीछे जाये नहीं, जब देखो वहीं का वहीं, उसका नाम अपराधी। प्रश्नकर्ता : अपराध की व्याख्या क्या है? दादाश्री : विराधना बिना इच्छा के होती है और अपराध इच्छापूर्वक होता है। प्रश्नकर्ता : वह कैसे, दादाजी? दादाश्री : जिद पर अड़ा हो तो अपराध कर बैठता है। समझता है कि यहाँ विराधना करने जैसा नहीं है, फिर भी विराधना करता है। समझता हो फिर भी विराधना करे वह अपराध में जाता है। विराधना करनेवाला छूट जाता है पर अपराध करनेवाला नहीं छूटता। बहुत भारी अहंकार हो वह अपराध कर बैठता है। इसलिए हमें अपने आप से कहना पड़ता है कि, 'भैया, तू तो पगला है, बिना वजह (अहंकार का) पावर लेकर चलता है। यह तो लोग नहीं जानते मगर मैं जानता हूँ कि तू क्या है? तू तो चक्कर है।' ऐसे हमें इलाज करना पड़ता है। प्लस-माइनस करना पड़ता है, अकेले गुणा ही करते हो तो कहाँ पहुँचे? इसलिए हमें भाग करना होगा। जोड-बाकी नेचर के अधीन है, जबकि गुणा-भाग प्रश्नकर्ता : किसी की निंदा करें उसकी गिनती किस में होगी? दादाश्री : निंदा विराधना कहलाती है पर प्रतिक्रमण करने से धुल जाती है। वह अवर्णवाद के समान है। इसलिए तो हम कहते हैं न कि किसी की निंदा मत करना। फिर भी लोग पीछे से निंदा करते हैं। अरे, निंदा नहीं करनी चाहिए। यह वातावरण सारा परमाणुओं से ही भरा है, इसलिए सब कुछ उसे पहुँच जाता है। एक शब्द भी किसी के बारे में गैरजिम्मेवारीवाला नहीं बोल सकते और बोलना ही है तो कुछ अच्छा बोलिए। कीर्ति बयान करना, अपकीर्ति मत बयान करना। अतः किसी की निंदा में मत पड़ना। प्रशंसा नहीं कर सको तो हर्ज नहीं, पर निंदा मत करना। मैं कहता हूँ कि निंदा करने में हमें क्या फायदा है? उसमें तो भारी नुकसान है। इस जगत में यदि कोई जबरदस्त नुकसान है तो वह निंदा करने में है। इसलिए किसी की भी निंदा करने के लिए कोई कारण नहीं होना चाहिए। यहाँ निंदा जैसी वस्तु ही नहीं होती। हम समझने के लिए ये बातें करते हैं कि क्या सही और क्या ग़लत! भगवान ने क्या कहा? कि ग़लत को ग़लत समझ और अच्छे को अच्छा समझ। पर ग़लत समझते समय उस पर किंचित्मात्र द्वेष नहीं होना चाहिए और अच्छा समझते समय उस पर किंचित्मात्र राग नहीं होना चाहिए। गलत को गलत नहीं समझें तो अच्छे को अच्छा नहीं समझ सकते। इसलिए हम विस्तृत रूप से बात करते हैं। ज्ञानी के पास ही ज्ञान समझ में आता है। अभाव, तिरस्कार नहीं किया जाये... प्रश्नकर्ता : ४. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया

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