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भावना से सुधरे जन्मोजन्म
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
इसलिए यह कलम बोलते रहने पर दोष नहीं लगता। आप हुक्का पीते जायें और बोलते जायें कि 'यह नहीं पीना चाहिए, नहीं पिलाना चाहिए या पिलाने के प्रति अनुमोदन नहीं किया जाये ऐसी शक्ति दो।' तो इससे सारे करार खतम होते जाते हैं, वरना पुद्गल का स्वभाव तुरंत पलटी मार देने का है। इसलिए ऐसी भावना करनी चाहिए (वरना दोष छूटेंगे नहीं)।
जगत कल्याण करने की शक्ति दो प्रश्नकर्ता : ९. हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की परम शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो। हम यह कल्याण की भावना करें, तो वह किस प्रकार काम करेगी?
दादाश्री : आपका शब्द ऐसा निकले कि सामनेवाले का काम हो
जाये!
अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जायें, ऐसी परम शक्ति दो।
दादाश्री : अवर्णवाद यानी किसी मनुष्य की बाहर इज्जत अच्छी हो, रूतबा हो, कीर्ति हो, उसके बारे में उलटा बोलकर उसकी इज्जत नीलाम करना, उसे अवर्णवाद कहते हैं।
प्रश्नकर्ता : इसमें मृतकों को भी हम जो क्षमापना करते हैं, हम जो संबोधन करते हैं, वह उनको पहुँचेगा क्या?
दादाश्री : उन्हें पहुँचाने का नहीं है। इसमें ऐसा कहना चाहते हैं कि जो आदमी मर गया है, आज उसका नाम लेकर आप गालियाँ दो तो आप भयंकर दोष के भागी बनते हो। इसलिए हम मना करते हैं कि मरे हुए का भी नाम मत देना (कुछ उलटा मत बोलना)। बाकी पहुँचाने नहीं पहुँचाने का तो सवाल ही नहीं है। कोई बुरा आदमी हो
और वह सबकुछ उलटा करके मर गया हो पर उसका भी पीछे से बुरा मत बोलना।
रावण के बारे में भी उलटा नहीं बोल सकते, क्योंकि वह अभी भी देहधारी है (दूसरे जन्म में)। 'रावण ऐसा था और वैसा था' बोलें न, तो वह 'फोन' उसे पहुँच जाये (आपके स्पंदन उसका आत्मा जहाँ कहीं भी हो वहाँ पहुँच जाते हैं)।
हमारे कोई सगे-संबंधी मर गये हों और लोग उनकी निंदा करते हों तो हमें उसमें हाँ में हाँ नहीं मिलानी चाहिए। और ऐसा हुआ हो तो हमें फिर पछतावा करना चाहिए कि ऐसा नहीं होना चाहिए। किसी मृतक के बारे में ऐसी बात करना भयंकर अपराध है। जो मर गया है उसे भी हमारे लोग नहीं छोड़ते। ऐसा करते हैं कि नहीं करते लोग? ऐसा नहीं करना चाहिए, ऐसा हम कहना चाहते हैं। उसमें बड़ा भारी जोखिम है।
उस समय पहले से बँधे अभिप्राय अनुसार यह बोल देते हैं।
प्रश्नकर्ता : आप पौद्गलिक या 'रीअल' (आत्म) कल्याण की बात करते हैं?
दादाश्री : पुद्गल नहीं, हमें तो 'रीअल' की ओर ले जाये उसकी आवश्यकता है। फिर 'रीअल' के सहारे आगे का (मोक्ष तक का) काम हो जाता है। यह 'रीअल' प्राप्त हो तो 'रिलेटिव' प्राप्त होगा ही। सारे संसार का कल्याण करो ऐसी भावना करनी है। यह मात्र गाने के लिए नहीं बोलना है, ऐसी भावना रखनी है। यह तो लोग इसे केवल गाने के लिए गाते हैं, जैसे श्लोक बोलते हैं ऐसे।
प्रश्नकर्ता : ऐसे ही फ़िजूल बैठा रहे उसके बजाय ऐसी भावना करे तो उत्तम कहलाये न?
दादाश्री : अति उत्तम। बुरे भाव तो निकल गये! उसमें जितना हो पाया उतना सही, उतनी कमाई तो हुई!
प्रश्नकर्ता : उस भावना को मिकेनिकल भावना कह सकते हैं? दादाश्री : नहीं। मिकेनिकल कैसे कहलाये? मिकेनिकल तो जो