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भावना से सुधरे जन्मोजन्म
भावना से सुधरे जन्मोजन्म
चाहिए पर विचार में भी नहीं होना चाहिए। बाहर बोलें वह अलग लेकिन मन में भी ऐसे अच्छे विचार होने चाहिए कि सामनेवाले का प्रमाण नहीं दुभे। क्योंकि मन में जो (बुरे) विचार आते हैं, वे सामनेवाले को पहुँचते हैं। इसलिए तो इन लोगों के मुँह चढ़े हुए होते हैं। क्योंकि आपका विचार वहाँ पहुँचकर उन्हें असर करता है।
प्रश्नकर्ता : किसी के प्रति खराब विचार आये तो उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए?
दादाश्री : हाँ, नहीं तो उसका मन बिगड़ेगा। और प्रतिक्रमण करने पर उसका बिगड़ा हुआ मन सुधर जायेगा। किसी के लिए भी बुरा या ऐसा-वैसा नहीं सोचना चाहिए। ऐसा कुछ भी नहीं करना चाहिए। सब अपना-अपना सम्हालिए, बस! और कोई झंझट नहीं।
धर्म का प्रमाण नहीं दुभे... प्रश्नकर्ता : २. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाये या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो।
मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाये ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्यावाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दो। इसे विस्तार से समझाइए।
दादाश्री : किसी का भी प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। कोई भी ग़लत है, ऐसा नहीं लगना चाहिए। 'एक' संख्या कहलाती है कि नहीं कहलाती?
प्रश्नकर्ता : हाँ जी। दादाश्री : तो 'दो' संख्या कहलाती है कि नहीं कहलाती? प्रश्नकर्ता : हाँ, कहलाती है।
दादाश्री : तब 'सौ' संख्यावाले क्या कहेंगे? 'हमारा सही, आपका ग़लत।' ऐसा नहीं कह सकते। सभी का सही है। 'एक' का 'एक' के अनुसार, 'दो' का 'दो' के अनुसार, प्रत्येक अपने अनुसार सही है। अर्थात् हर एक का (व्यूपोइन्ट) जो स्वीकार करता है, उसका नाम स्याद्वाद। एक वस्तु अपने गुणधर्म में है और हम उसके गुणों का स्वीकार करें और दूसरों का अस्वीकार करें, यह ग़लत है। स्यावाद यानी प्रत्येक के प्रमाण अनुसार। ३६० डिग्री होने पर सभी का सही कहलाता है लेकिन उसकी डिग्री तक उसका सही और इसकी डिग्री तक इसका सही होता है।
कोई भी धर्म ग़लत है ऐसा हम नहीं बोल सकते। हरएक धर्म सही है, कोई ग़लत नहीं है, हम किसीको ग़लत कह ही नहीं सकते। वह उसका धर्म है। मांसाहार करता हो, उसे हम ग़लत कैसे कह सकते हैं? वह कहेगा, 'मांसाहार करना मेरा धर्म है।' तो हम 'मना' नहीं कर सकते। वह उसकी मान्यता है, उसकी बिलीफ है। हम किसी की बिलीफ का खंडन नहीं कर सकते। पर जो शाकाहारी परिवार में जन्मे हैं, यदि वे लोग मांसाहार करते हों तो हमें उसे कहना चाहिए कि, 'भैया, यह अच्छी बात नहीं है।' फिर उसे मांसाहार करना हो तो उसमें हम आपत्ति नहीं उठा सकते। हमें समझाना चाहिए कि यह वस्तु हेल्पफुल (सहायक) नहीं है।
स्याद्वाद यानी किसी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना। जितनी मात्रा में सत्य हो उतनी मात्रा में उसे सत्य कहें और जितनी मात्रा में असत्य हो उतनी मात्रा में उसे असत्य कहें, उसका नाम प्रमाण नहीं दुभाया। क्रिश्चिअन प्रमाण, मुस्लिम प्रमाण, किसी भी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। क्योंकि सभी धर्म ३६० डिग्री में समा जाते हैं। Real is the centre and all these are Relative views. (रीअल सेन्टर है और ये सारे रिलेटिव-सापेक्ष दृष्टिकोण हैं।) सेन्टरवाले के लिए रिलेटिव सारे व्यू समान हैं। भगवान का स्यावाद यानी किसी को किंचित्मात्र दु:ख नहीं हो, फिर चाहे कोई भी धर्म हो।