Book Title: Bhavna Sudhare Janmo Janam Author(s): Dada Bhagwan Publisher: Mahavideh Foundation View full book textPage 9
________________ भावना से सुधरे जन्मोजन्म से किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दुःख नहीं हो।' ऐसा पाँच बार बोलकर घर से निकलना और फिर जो दुःख हो तो वह हमारी इच्छा के विरुद्ध हुआ है, उसका शाम को प्रतिक्रमण कर लेना । ७ प्रतिक्रमण यानी क्या? दाग़ लगते ही तुरंत धो डालना। फिर कोई हर्ज नहीं है। फिर क्या झंझट ? प्रतिक्रमण कौन नहीं करता? जिसे (अज्ञान रूपी) बेहोशी है, वे मनुष्य प्रतिक्रमण नहीं करते। बाकी मैंने जिनको ज्ञान प्रदान किया है, वे मनुष्य कैसे हो गये हैं? विचक्षण पुरुष हो गये हैं, प्रति क्षण सोचनेवाले। बाईस तीर्थंकरों के अनुयायी व थे। वे 'शूट ऑन साइट' प्रतिक्रमण करते थे। दोष हुआ कि तुरंत ही 'शूट'! और आज के मनुष्य ऐसा नहीं कर पायेंगे, इसलिए भगवान ने यह रायशी - देवशी, पाक्षिक और पर्युषण में संवत्सरी प्रतिक्रमण करना बताया है। स्याद्वाद वाणी, वर्तन, मनन... प्रश्नकर्ता : अब ज़रा 'किसीका भी अहम् नहीं दुभे (दुखे) ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की शक्ति दीजिए।' इसे समझाइए । दादाश्री : स्याद्वाद यानी सब लोग किस भाव से, किस 'व्यूपॉइन्ट' (दृष्टिकोण) से कहते हैं, हमें यह समझना चाहिए। प्रश्नकर्ता: सामनेवाले का 'व्यूपॉइन्ट' समझना वह स्याद्वाद कहलाता है ? दादाश्री : सामनेवाले का 'व्यूपॉइन्ट' समझना और उसके मुताबिक व्यवहार करना, उसका नाम स्याद्वाद। उसके 'व्यूपॉइन्ट' को दुःख नहीं पहुँचे ऐसा व्यवहार करना। चोर के 'व्यूपॉइन्ट' को भी दुःख नहीं हो इस तरह आप बोलें, उसका नाम स्याद्वाद ! हम जो बात करते हैं, वह मुस्लिम हो कि पारसी हो, सभी को भावना से सुधरे जन्मोजन्म एक रूप से समझ में आती है। किसी का प्रमाण नहीं दुभता कि 'पारसी ऐसे हैं, स्थानकवासी ऐसे हैं।' ऐसा दुःख नहीं होना चाहिए । ८ प्रश्नकर्ता : यहाँ पर कोई चोर बैठा हो, उसे हम कहें कि चोरी करना अच्छा नहीं है, तो उसका मन तो दुभेगा ही न? दादाश्री : नहीं, ऐसा मत कहना। हमें उसे कहना चाहिए कि 'चोरी करने का फल ऐसा आता है। तुझे ठीक लगे तो करना।' ऐसा कह सकते हैं। अर्थात् बात ढंग से करनी चाहिए। तब वह सुनने को तैयार होगा। वरना वह बात को सुनेगा ही नहीं और उलटे आप अपने शब्द व्यर्थ गँवायेंगे। हमारा बोला व्यर्थ जायेगा और ऊपर से वह बैर बाँधेगा कि बड़े आये नसीहत करनेवाले ! लोग कहते हैं कि चोरी करना गुनाह है। पर चोर क्या समझता है कि चोरी करना मेरा धर्म है। हमारे पास कोई चोर को लेकर आये तो हम उसके कंधे पर हाथ रखकर अकेले में पूछें कि 'भाई, यह बिजनेस (धंधा) तुझे अच्छा लगता है? तुझे पसंद आता है?' फिर वह अपनी हक़ीकत बतायेगा। हमारे पास उसे भय नहीं लगता । मनुष्य भय के कारण झूठ बोलता है। फिर उसे समझायें कि, 'यह जो तू करता है उसकी जिम्मेवारी क्या होती है? उसका फल क्या आता है, यह तुझे मालूम है?" 'वह चोरी करता है' ऐसा तो हमारे मन में भी नहीं होता और यदि ऐसा हमारे मन में होता तो उसके ऊपर असर होता । हर कोई अपने-अपने धर्म में है। किसी भी धर्म का प्रमाण नहीं दुभे, उसका नाम स्याद्वाद वाणी। स्याद्वाद वाणी संपूर्ण होती है। प्रत्येक की प्रकृति अलगअलग होती है, फिर भी स्याद्वाद वाणी किसी की भी प्रकृति को हरकत नहीं करती। प्रश्नकर्ता: स्याद्वाद मनन अर्थात् क्या? दादाश्री : स्याद्वाद मनन अर्थात् विचारणा में, विचार करते समय भी किसी धर्म का प्रमाण नहीं दुभाना चाहिए। वर्तन में तो होना ही नहींPage Navigation
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