Book Title: Bhavna Sudhare Janmo Janam
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation

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Page 8
________________ भावना से सुधरे जन्मोजन्म भावना से सुधरे जन्मोजन्म कोई मज़दूर हो, उसका भी तिरस्कार नहीं करना। तिरस्कार से उसका अहम् दुभेगा। हमें उसकी ज़रूरत नहीं हो तो उससे कहें कि 'भैया, अब मुझे तेरा काम नहीं है' और यदि उसका अहंकार दुभता नहीं हो तो पैसे देकर भी उसे काम पर से फारिग कर देना। पैसे तो आ जायेंगे पर उसका अहम् नहीं दुभाना चाहिए। वर्ना वह बैर रखेगा, जबरदस्त बैर बाँधेगा! हमारा कल्याण नहीं होने देगा, बीच में आयेगा। यह तो बहुत गहन बात है! अब इसके बावजूद किसी का अहंकार आपसे दुभाया गया हो तो यहाँ हमारे पास (इस कलम अनुसार) शक्ति माँगना। इसलिए जो हुआ उससे खुद का अभिप्राय अलग रखते हैं। फिर उसकी अधिक जिम्मेवारी नहीं रहती। क्योंकि अब उसका अभिप्राय अलग हो गया। अभिप्राय जो अहंकार दुभाने का था, वह इस प्रकार माँग करने से अलग हो गया। प्रश्नकर्ता : अभिप्राय से अलग हो गया यानी क्या? दादाश्री : 'दादा भगवान' तो समझ गये न, कि इस बेचारे को अब किसी का अहम् दुभाने की इच्छा नहीं है। अपनी खुद की ऐसी इच्छा नहीं है फिर भी हो जाता है। जबकि जगत के लोगों को इच्छा सहित हो जाता है। अर्थात् यह कलम बोलने से क्या होता है कि हमारा अभिप्राय बदल गया। इसलिए हम उनकी ओर से मुक्त हो गये। अर्थात् यह शक्ति ही माँगनी है। आपको कुछ करना नहीं है, केवल शक्ति ही माँगनी है। इसे अमल में नहीं लाना है। प्रश्नकर्ता : शक्ति माँगने की बात ठीक है पर हमें ऐसा क्या करना चाहिए कि जिससे दूसरों का अहम् नहीं दुखे? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ नहीं करना है। इस कलम के अनुसार आपको केवल बोलना है, बस! और कुछ करना नहीं है। हाल में जो अहम् दुभाया जाता है वह फल (डिस्चार्ज में) आया है। अभी जो होता है वह तो पहले डिसाइड हो गया है, उसे रोका भी नहीं जा सकता, परिवर्तन करने जाना माथापच्ची है। पर यह कलम बोलें तो फिर जिम्मेवारी ही नहीं रहती। प्रश्नकर्ता : और यह बोलना सच्चे दिल से होना चाहिए। दादाश्री : वह तो सच्चे दिल से ही करना चाहिए। और जो मनुष्य करता है न, वह खोटे दिल से नहीं करता, सच्चे दिल से ही करता है। पर इसमें खुद का अभिप्राय अलग हो गया। यह एक तरह का बहुतबड़ा विज्ञान है, समझने जैसा। इसके अनुसार कुछ करना नहीं है, आपको तो ये नौ कलमें बोलना ही है। शक्ति ही माँगना कि 'दादा भगवान, मुझे शक्ति दो। मुझे यह शक्ति चाहिए।' इससे आपको शक्ति प्राप्त होगी और जिम्मेवारी नहीं रहेगी। जगत कौन-सा विज्ञान सिखलाता है? 'ऐसा मत करो'। लोग क्या कहते हैं कि अरे भाई, मुझे नहीं करना है फिर भी हो जाता है। इसलिए आपका ज्ञान हमें 'फिट' (अनुकूल) नहीं होता है। यह जो आप कहते हैं, इससे आगे का बंद नहीं होता और आज का रूकता नहीं, इसलिए दोनों ओर से नुकसान है। अर्थात् 'फिट' हो ऐसा होना चाहिए। भाव प्रतिक्रमण, तत्क्षण ही प्रश्नकर्ता : जब सामनेवाले का अहंकार दुखाया, तब ऐसा होता है कि यह मेरा अहंकार बोला न? दादाश्री : नहीं, ऐसा अर्थ निकालने की ज़रूरत नहीं है। हमारी जागृति क्या कहती है? यह हमारा मोक्षमार्ग माने अंतर्मुखी मार्ग है। निरंतर अंदर की जागृति में ही रहना और सामनेवाले का अहम् दुभाया हो तो तुरंत उसका प्रतिक्रमण कर लेना, यही आपका काम है। आप तो इतने सारे प्रतिक्रमण करते हैं उसमें एक ज्यादा! हम से भी यदि कभी किसी का अहम् दुभाया गया हो, तो हम भी प्रतिक्रमण करते हैं। इसलिए हररोज सुबह में ऐसा बोलना कि, 'मेरे मन-वचन-काया

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