Book Title: Bhav Tribhangi Author(s): Shrutmuni, Vinod Jain, Anil Jain Publisher: Gangwal Dharmik Trust RaipurPage 11
________________ विषयानुक्रमणिका क्र. विषय 1. मंगलाचरण एवं प्रतिज्ञा वचन 2. मतिज्ञानादि भावों की उत्पत्ति व्यवस्था 3. भावों के मूल व उत्तर भेद 4. चौदह गुणस्थानों में मूलभाव 5. मिथ्यात्व गुणस्थान में चौंतीस भाव 6. चौदह गुणस्थानों में भाव व्युच्छित्ति 7. गुणस्थानों में सद्भाव रूप भाव 8. गुणस्थानों में अभाव भावों का कथन 9. चौदह गुणस्थानों में भाव त्रिभङ्गी एवं संदृष्टि (1) 10. मध्य मंगलाचरण व प्रतिज्ञा वचन 11. तीन सम्यक्त्वों का सद्भाव 12. नरकगति में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टि याँ (2-11 ) 13. तियंचगति में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टियाँ (12-18 ) 14. मनुष्यगति में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टियाँ (19-27 ) 15. देवगति में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था Jain Education International गाथा स. पृष्ठ सं. 1-2 1 3-20 2-10 21-28 10-12 29-33 13-15 34 15 35-41 16-20 20-21 21 235 42 43 44 45-48 49-52 53-60 61-70 71-77 एवं संदृष्टि याँ ( 28-42 ) 16. इन्द्रिय एवं काय मार्गणा में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टि याँ (43-47) 17. योग मार्गणा में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टियाँ (48-55 ) 18. वेद मार्गणा में भाव त्रिभङ्गी व्यवस्था एवं संदृष्टि याँ (56-58) 19. कषाय मार्गणा एवं अज्ञानत्रय में भाव त्रिभङ्गी 92-93 व्यवस्था एवं संदृष्टि याँ (59-61) 78-80 80-89 90-91 For Private & Personal Use Only 22-29 29 30-32 32-35 35-45 45-57 46-58 58-74 59-74 74-86 76-86 87-88 87-90 88-102 91-103 104 104-107 107-108 108-111 www.jainelibrary.orgPage Navigation
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