Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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५६
२४
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गा० सं० ८४
| इय चिंततो पसरइ ४१८ ५२ | इय जाणिऊण पूर्ण २४०
" , , ५८५ इय णाऊण विसेसं ४८७ इय गाऊं परमप्पा इय बहुकालं सग्गे ४२०
| इयरो वितरदेवो १५७ १२८ । इयरो संघाहिवई १५४ ११२ इय विलवंतो हम्मद ६१
इय विवरीयं उत्तं ५७ १४१ इय विवरीय कहियं ६२ ११८ इय संखेवं कहियं ४४७
इलयाइथावराणं ३५२ इह लोए पुण मंता ४५७ इंदियविसयवियारा ६३०
.
गा० सं० अहवा वत्थुसहावो ३७३ अह विक्किरिओ रइयो२२० अंगे णासं किच्चा ४३६ अंतरमुहुत्तकालो ६७८ अंतरमुहुत्तमज्झे ४०६
आ. आऊचउप्पयारे ३३५ आयमचाए चत्तो ६०८ आयाराइसत्थं ५२४ आलिहउ सिद्धचक्कं ४४३ आवरणाण विणासे ६६६ आवासयाई कम्मं ६१० आवाहिऊण संघ १४६
,, देवे ४३९ आसणठाणं किच्चा ४२८ आसवइ जं तु कम्मं ३२१ आसवइ सुहेण सुहं ३२० आसि उज्जेणिणयरे १३८ आहारमओ देहो ५१९ आहारसणे देहो ५२१
१८
८
८०
१०० १३२
७३ ईहारहिया किरिया ६७१
१४२
१११ ।
९७
३
इत्थीगिहत्थवग्गे ८७ इत्थेव तिणि भावा ६०० इय अट्ठभेयअच्चण ४७८ इय अण्णाणी पुरिसा १९० इय उप्पत्ती कहिया १६० इय एयंतविणडीओ ७० इय एयंतं कहियं ७२
उग्गतवतवियगत्तो ३७९ ११२ उच्चारिऊण मंते ।
| उच्चारिऊण मते ४४१ उहाविऊण देहं ४३४
उत्तमकुले महंतो ४२१ १२७ उत्तमछित्ते वीयं ५०१ १०४ उत्तमपत्तं णिदिय ५५४
| उत्तमरयणं खु जहा ५०४
उदयाभाओ जत्थ २६८ २० उप्पजंति मणुस्सा ५३५ २१ । उप्पण्णो कणयमए ४१२
१०८ ११८ १०९
स २६८६७
११४ ९२
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