Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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पृष्ठम् १०४ १४४
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गा० सं० पृष्ठम्
गा० सं० जो तसवहाउ विरओ ३५१ ८० झाणं झाऊण पुणो ४८१ जो तिलोत्तम जो ति २१६ __ ५१ झाणं सजोइकेवलि ६८३ जो देओ होऊणं २३३ झायइ धम्मज्झाणं ६०३ जो पढइ सुणइ भावइ ७०० १४७ झायारो पुण झाणं ६१६ जो परमहिलाकजे २२२
झेयं तिविहपयार ६३१ जो पुज्जइ अणवरयं ४५६ १०० जो पुण गोणारिपमुहे २४५ ठिदिकरणगुणपउत्तो २८२ जो पुण चेयणवंतो ४२ १२ ठिदिकारणं अधम्मो ३०७ जो पुण हुंतइ धणकण५१६ १११ जो पुणु वड्डद्धारो ४४८ ण उ होइ थविर ११८ जो भणइ को वि एवं २८० णव उघाइकम्मं ४८० जो वोलइ अप्पाणं ५५५ णकम्मबंधण ६९८ जो हणइ एयगावी २४४ णकम्मबंधो ३७६ जं उप्पजह दव्वं ५७८ णपयडि बंधो ६८७ जं कम्मं दिढबद्धं १९६ णट्ठा किरयपविती ६८१ जं जं सयमायरियं १३६ णट्ठासेसपमाओ ६१४ जं णस्थि रायदोसो ६७० १४१ पढे मणसंकप्पे जं पुण रूवीदव्वं ३१७ ७२ । णढे असेसलोए । २४२ जं पुण संपइ गहियं १५० ण तिलोत्तमाए २७७ जं पुणु वि णिरालंबं ३८१ णस्थि धरा आयासं २१७ जं रयणत्तयरहियं ५३० ११३ णस्थि वयसीलसंजम ५५१ जं सुद्धो तं अप्पा ४३३
ण मुणइ इय जो ३९८
ण मुणइ जिण १६३ झाणस्स फलं तिविहं ६३३ ण मुणइ सयं १८१ झाणस्स य सत्तीए ६३४ १३३ ण य चिंतइ देहत्थं ६२८ झाणाणं संताणं ३८७ | ण य देइ णेय ५५८ झाणेण तेण तस्स १०५
ण लहंति फलं ५५० झाणेहिं तेहिं पावं ३६४ ८२ Jण वि होइ तत्थ ७७
१२२
१४४ १२९
११७
5555
१३२ ११९
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