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________________ पृष्ठम् १०४ १४४ " . ९८ । १०४ १४६ ११ गा० सं० पृष्ठम् गा० सं० जो तसवहाउ विरओ ३५१ ८० झाणं झाऊण पुणो ४८१ जो तिलोत्तम जो ति २१६ __ ५१ झाणं सजोइकेवलि ६८३ जो देओ होऊणं २३३ झायइ धम्मज्झाणं ६०३ जो पढइ सुणइ भावइ ७०० १४७ झायारो पुण झाणं ६१६ जो परमहिलाकजे २२२ झेयं तिविहपयार ६३१ जो पुज्जइ अणवरयं ४५६ १०० जो पुण गोणारिपमुहे २४५ ठिदिकरणगुणपउत्तो २८२ जो पुण चेयणवंतो ४२ १२ ठिदिकारणं अधम्मो ३०७ जो पुण हुंतइ धणकण५१६ १११ जो पुणु वड्डद्धारो ४४८ ण उ होइ थविर ११८ जो भणइ को वि एवं २८० णव उघाइकम्मं ४८० जो वोलइ अप्पाणं ५५५ णकम्मबंधण ६९८ जो हणइ एयगावी २४४ णकम्मबंधो ३७६ जं उप्पजह दव्वं ५७८ णपयडि बंधो ६८७ जं कम्मं दिढबद्धं १९६ णट्ठा किरयपविती ६८१ जं जं सयमायरियं १३६ णट्ठासेसपमाओ ६१४ जं णस्थि रायदोसो ६७० १४१ पढे मणसंकप्पे जं पुण रूवीदव्वं ३१७ ७२ । णढे असेसलोए । २४२ जं पुण संपइ गहियं १५० ण तिलोत्तमाए २७७ जं पुणु वि णिरालंबं ३८१ णस्थि धरा आयासं २१७ जं रयणत्तयरहियं ५३० ११३ णस्थि वयसीलसंजम ५५१ जं सुद्धो तं अप्पा ४३३ ण मुणइ इय जो ३९८ ण मुणइ जिण १६३ झाणस्स फलं तिविहं ६३३ ण मुणइ सयं १८१ झाणस्स य सत्तीए ६३४ १३३ ण य चिंतइ देहत्थं ६२८ झाणाणं संताणं ३८७ | ण य देइ णेय ५५८ झाणेण तेण तस्स १०५ ण लहंति फलं ५५० झाणेहिं तेहिं पावं ३६४ ८२ Jण वि होइ तत्थ ७७ १२२ १४४ १२९ ११७ 5555 १३२ ११९ २३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003153
Book TitleBhav Sangrahadi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPannalal Soni
PublisherManikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
Publication Year
Total Pages328
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Metaphysics, & Philosophy
File Size10 MB
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