Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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गा०सं० पृष्ठम् ।
__ गा० सं० पृष्ठम् सायारो अणयारो २८९६६ सो सयणो सो बंधु ५६५ ११० सिद्धं सरूवरूवं ५९८ १२६ । सो सोत्तियो भणिज्जइ ५५ सिररेहभिण्णसुण्णं ४६३ १०१ संकाइदोसरहियं २७९ सिरिविमलसेण ७०१ १४७ संखो पुण मणइ १७७४३ सिल्हारसअयरु ४७६ १.३ संते आयुसि जीवइ ८१ २३ सुइअमलो वर ४०९ ८१ संपत्तबोहिलाहो ४८५ १०५ सुक्कज्झाणं पढमं ६५६ १३८ संवित्तीए वि तहा १०६ सुक्कज्झाणं बीयं ६६३ १४० संवेओ णिव्वेओ २६३ सुक्कं तत्थ पउत्तं ६५० १३७ संसयमिच्छादिट्ठी ८५ सुज्झइ जीवो तवसा २१
संसारचकवाले ४०३ सुद्धो खाइयभावो ६६८ १४१ | संहणणस्स गुणेण १२७ सुपरिक्खिऊण तम्हा २२३ ५३ / संहणणं अइणीचं १३० ३३ सुयदाणेण य लब्भइ ४९१ १०६ सुरहीलोयस्सग्गे ५२ हणिऊण पोढछेलं ४४ सुहदुक्खं भुंजंतो ३०२ हयगयगोदाणाई
५२५ सुहमापज्जत्ताणं ९४
हरिरइयसमवसरणो ३७५ सुहमो अमुत्तिवंतो २९८
हवइ च उत्थं ठाणं २५९ सेओ सुद्धो भावो सेसा जे वे भावा
३६२ ,, ,, झाणं ७
हसिओ सुरेहिं २१२ सोऊण इमं वयणं १४० | हिंसाइदोसजुतो ५५३ ११८ सो कह सयणो भण्णइ ५६४ १२० हिंमारहिए धम्मे २६२ सोत्तिय गव्वुढा ५४ १७ हिंसाविरई सच्चं ३५३ ८० • सो दायव्वो पत्ते ५२७
हुति अणियहिणो ते ६५१ १३७ सो पुण दुविहो २७४
होऊण चकवटी ४८४ हो बंधो चउभेओ ३२९
होहइ इह दुभिक्खं १३९ सोलदलकमलमज्झे ४४४ होऊण खीमोहो ६६४ सोलसदलेसु सोलह ४५ ९९ | हेट्ठियो हु चेइ ६५९ १३९ सोलससरेहिं वेढहु ४४५ ९८ | होति अजावा दुविहा ३०३ ७०
इति गाथा-सूची।
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