Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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________________ पृष्ठम् अशुद्धयः भ्रमन्तोऽसौ बन्द्याः गता साराष्ट्रां लिंग दनागारा लक्षणः 664 वेश्या पराङ्गना चौर्य सत्पच अधिकापाक आतैरानं शुद्धयः पंक्तिः भ्रमन्नसौ (इत्यनेन भाव्यं)१९ वन्द्याः गताः सौराष्ट्रां लिंग दनगारा लक्षणो 168 173 वेश्यापराङ्गनाचौर्य सत्पंच अधिका पाक आर्तरौद्रं 188 185 194 198 201 204 204 (ति) 218 288 सजम पद्ममधुकरः चदुतिगदुग पुवेदे संजम पद्मप्रकरमधुकरः चदुदुगतिग पुंवेदे 237 246 254 28 बालेन्द्रः बालेन्दुः 283 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
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