Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 301
________________ घरवावारा केई घाइचक्कविणा से घ. गा० सं० ३८५ ६६५ चविदाणं उत्तं वत्तं रिसियरणं चंदणसुअंधलेओ चम्मं रुहिरं मंसं चलणं वलणं चिंता छट्ठमए गुणठाणे छत्तीस गुणसमग्गो छत्तीसे वरिससए चित्तणिरोहे झाणं चित्तप व विचित्तं वित्तं वित्तं पत्तं चिंतइ किं एवडुं चंडालडूंबीवर चंडाल भिल्लछिंपिय छद्दव्वणवत्था छिन्नइ भिज्जइ छंडिय णियवहृत्तं च. رد छ. ज. जइ उवरत्थं तिजयं जइ एवं तो पिपरो ५२२ १४४ ४७१ ४०७ ६९७ ६१९ ३३६ ५६२ ४१५ २०६ ५४३ २२८ ३५ „ "> इत्थी ९७ जय कहव तत्थ णिग्गइ ५९ जइ कह विहु एयाई १७१ जइ खणियत्तो जीवो ૬૪ १९ Jain Education International गा० सं० जर गिवंतो सिज्झइ १०२ जइ चेयणा अणिचा ६८ जइ जलण्हाणपउत्ता १८ जइ णक्कलो महत्पा २३८ जई तप्पर उग्गतवं ९२ जर तिजयपालणत्थे २३१ जर तुप्पं णवणीयं २५६ १४६ जइ ते होंति समत्था ७८ १३० जइ तो वन्धुभूओ २१९ ७.७ जइ देवय देइ सुयं ७९ जइ देवो हणिऊणं ४ ३ नइ पुज्जइ को विणरो ४४९ पृष्टम् ८६ १४० ११२ ३६ १०३ ९० ११९ ९२ ६०६ १२८ ३७७ १३७ ३६७ १७८ २११ ४९ ११६ ८५ ३५ ८३ ४ ३ ५० जइ पुत्तदिष्णदाणे ३३ जइ फलइ कह वि दाणं ४०२ जइ वंभो कुणइ जयं २०४ जइ भइ को वि एवं ३८९ जइया दहरहपुत्तो २२६ जइ वि सुजायं बीयं ४०१ इस ८८ मुक् जइ सव्वदेवयाओ ૮૨ जइ संति तस्स दोसा १०९ जक्खयणायाणं ७५ ६२९ १२० जत्थ ण करणं चिंता जत्थ ण कंटय मंग्गो ५४ १० २७ ७१ १८ २९५ ४१ जर उद्देस्य अंडय २०५ १९ | जरसो य वाहिवेयण ५९२ जम्हा पंचपहाणा जमिम भवे जं देहं For Private & Personal Use Only पृष्ठम् २८ २० ६ ५६ २६ ५४ ५५ २३ ५२ २३ १२ ९९ १० ८९ ४९ ८७ ५३ ८९ २५ २४ २९ २२ १३२ ३१ ६३ ६८ ४९ १२५ www.jainelibrary.org

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