Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti
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पृष्ठम् ५४ ९३
१०१
१३७
11 rurur mar.
१२
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१२१
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गा० सं० पृष्ठम्
गा० सं० कप्पूरतेल्लपयलिय ४७५ १०३ किं दहवयणो सीया २३० कम्मफलछाइओ २९७६८ / किं दाणं मे दिण्णो ४१७ कयपावो णरयगओ ३४ १० किं पट्टवेइ दूवं २२९ कलसचउक्कं ठाविय ४३८
किं बहुणा उत्तेण ४६१ कस्स थिरा इह लच्छी ५६०
११९
किं सो रज्जणिमित्तं २०९ कहियाणि दिहिवादे ३८३
किं हडमुंडमाला २४७ कालस्स य अणुरूवं ५१३ ११०
ख. कालेण उवाएण य ३४५ ७९ खइएण उवसमेण ६४८ कालं काउं कोई ६५८ खयउवसमं च खइयं २६५ किचा काउस्सग्गं ४७९ १०४ खयउवसमं पउत्तं २६९ किडि कुम्ममच्छरूवं ४१ खवएसु उवसमेसु ६४३ किण्णो जइ धरइ जयं २५४ ५३ खवएसु य आरूढा १०७ किविणेण संचियधणं ५५९ ११९ खंधेण वहति गरं ५७१ कुच्छिगयं जस्सणं ५११ ११० कुच्छियगुरुकयसेवा ११८ गन्भाई मरणंतं १७४ कुच्छियपत्ते किंचि ५३३ ११४
गयरूवं जं झेयं ६३२ कुणइ सराहं कोई २२ गहभूयडायणोओ ४५० केई गयसीहमुहा ५३८ ११५ गिरिणिग्गउणइवाहो ३१९ केई पुण गयतुरया ५४४ गिरिसरिसायरदीवो २०८ केई पुण दिवलोए ५४५ ११६ | गिहतरुवर वरगेहे ५८८ केई समसरणगया ५९५ १२६ | गिहलिंगे वटुंतो केवलभुत्ती अरुहे १०३ - २८ | गिहवावाररयाणं कोई पमायरहियं ६५७ गिहवावारविरत्तो कोहचउक्कं पढम २६६
गुत्तित्तयजुत्तस्स
१०४ को हं इह कस्साओ ४१६ |गेहे गेहे भिक्खं कंवलि वत्त्यं दुद्धिय ११७ ३१ गेहे वर्सेतस्स य ३९१ किं किंचिवि वेयमयं ५०५ १०९ गोदं कुलालसरिसं ३३७ किं जं सो गिहवंतो ३८४ ८६ । गंगाजलं पविट्ठा २५०
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१३३ १००
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११६
१२४
१००
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