Book Title: Bhav Sangrahadi
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Manikchand Digambar Jain Granthamala Samiti

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Page 297
________________ प्राकृत-भावसंग्रहस्य वर्णानुक्रमणिका। पृष्ठम् पृष्ठम् गा० सं० अमयक्खरे णिवेसउ ४३० अलिचुंबिएहिं पुजइ ४७३ अविरयसम्मादिट्ठी ३४९ mr ८० १०८ ८१ १४४ १०२ अ गा० सं० अइउत्तमसंहणणो ९९ अउदइऊपरिणामिउ ८ अकइयणियाणसम्मो ४०५ अच्छरतिलोत्तमाए २१० अज वि सा वलि १५९ अज्झावयगुणजुत्तो ३७८ अज्झाणपउत्तो ३६. अट्टर उद्दारूढो अहरउदं झाणं ३५७ अहरउदं झाय २०१ अट्ठगुणाणं लद्धी ६३८ अट्ठविहअच्चणाए ४५५ अट्ठविहचण काउं ५६९ अणिमा महिमा लहि ४१० अणुकूलं परियणयं ४१३ अण्णकए गुणदोसे ३६ अण्णम्मि भुंजमाणे ३२ अण्णाणधम्मलग्गो १८६ अण्णाणाओ मोक्खं १६४ अण्णाणि य रइयाई २५६ अण्णं इय णिसुणिजइ ४६ अण्णं जं इय उत्तं ११६ अस्थि जिणायमि कहि ४९ अस्थि हु अणाइभूवो ३३६ अभयपदाणं पढमं ४८९ अवि सहइ तत्थ ५८ असिऊण मंसगासं ६९ असुहकम्मस्स णासो ३६८ असुहसुहस्स विवाओ ३६९ असुहस्स कारणेहिं ३९७ असुहे असुहं झाणं ६८५ अह उडतिरियलोए ३७० अह एउणवण्णासे ४६६ अह छुहिऊण सउयरो २२५ | अह ढिंकुलया झाणं ३८६ | अहव मुणंतो छंडइ ६०७ १० अहवा एयं वयणं ९६ | अहवा एसो धम्मो ४१ | अहवा खिप्पउ सेहा ४३५ | अहवा जइ असमत्थो ४६२ अहवा जइ कल २३९ १३ अहवा जह कहव १६९ ३१ अहवा जह भणइ २४६ २०२ अहवा णियं विढतं ५८१ ७५ । अहवा तरुणी महिला ५८४ १०६ अहवा पसिद्धवयणं ५६ TvM २७ ४० १०१ ५७ १२३ १२४ १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org


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