Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram Author(s): Brajendranath Sharma Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 5
________________ २५६ ] भारतीय मूर्तिकला में त्रिविक्रम जित्वा लोकत्रयं कृत्स्नं हत्वा चासुरगवान् । पुरंदराय त्रैलोक्यं ददौ विष्णुरूरुक्रमः ।। वामन पुराण, ३१, ७० उपर्युक्त वणित कथा को प्राचीन भारतीय कलाकारों ने अत्यन्त सुन्दरता से पाषाण प्रतिमाओं के माध्यम से दर्शाया है। भारत का कोई ऐसा भाग नहीं है जो इस कथा से प्रभावित न हुआ हो। यह कथा दो प्रकार की प्रतिमानों से प्रदर्शित है। इनमें प्रथम (मायावट) वामन की है। इसमें भगवा विष्णु को विभिन्न प्रायध लिए एक बौने वैदिक ब्रह्मचारी के रूप में दिखाया गया है। इसका हमने स्थान पर वर्णन किया है देखें (चित्र १)। द्वितीय प्रकार की मूर्तियाँ (विश्वरूप) त्रिविक्रम की हैं, जिसमें उनका एक पैर आकाश नापने के लिए ऊपर उठा है। त्रिविक्रम की प्रारम्भिक प्रतिमाओं में पवाया (मध्यप्रदेश) से प्राप्त गुप्त कालीन मूर्ति अत्यधिक खण्डित होने पर भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है (देखें चित्र २)।१० दाहिने भाग पर दान की पूर्ति के लिए संकल्प जल देने का दृश्य बना है । बांई ओर अष्टभुजी त्रिविक्रम बाएं पैर से आकाश नापते दिखाए गए हैं । यह भाग अब बहुत कुछ नष्ट हो चुका है । उसी प्रदेश के घुसाई नामक स्थान से प्राप्त उत्तर गुप्त कालीन एक अष्टभुजी प्रतिमा गदा, खड्ग, चक्र, ढाल, धनुष, तथा शंख आदि आयुध लिए है । (देखें चित्र ३) उपर्युक्त प्रतिमा की भांति ही इसमें त्रिविक्रम ग्राकाश नापते उत्कीर्ण किए गए हैं । इसी फलक पर नीचे की ओर बलि छत्रधारी वामन को दान दे रहे है । इस प्रकार एक ही फलक पर वामनावतार की दो घटनाएं प्रदर्शित है । रायपुर (मध्यप्रदेश) से प्राप्त त्रिविक्रम में उठे हुए पैर के नीचे आदिशेष का चित्रण किया मिलता है जो हाथ जोड़े बैठा हुआ है । '१ स्थान और काल भेद के कारण त्रिविक्रम प्रतिमानों में भी भिन्नता मिलती है। मध्यकाल के आगमन के साथ साथ अष्टभुजी प्रतिमाओं की अपेक्षा चर्तु भुजी प्रतिमाएं अधिक प्रचलित हो गई । इस ८. राष्ट्रीय संग्रहालय में मध्यकालीन राजस्थानी प्रस्तर प्रतिमाएं, मरूभारती, पिलानी, अक्तूबर, १९६४, पृ० ८६-८७ ६. द्रष्टव्यः बृहच्छरीरो विमिमान ऋक्वभिर्युवा कुमारः प्रत्येत्याहवम । __ ऋगवेद, १, १५५, ६ स्थलेषु मायावटु वामनोऽच्यात् त्रिविक्रम: खेडवतु विश्वरूपः । भागवत, ६, ८, १३ वामन इति त्रिविक्रममभिवधति दशावतारविदः । प्रार्यासप्तशती, ६० १०. त्रिविक्रम की गुप्त कालीन अन्य प्रतिमाओं के लिए देखें: डा. अग्रवाल, केटेलोग प्रॉफ दी ब्रह्म निकल इमेजेज इन मथुरा पार्ट, १९५१, पृ० ८ तथा वार्षिक रिपोर्ट, मथुरा संग्रहालय, १९३६-३७ चित्र II/२. ११. गोपीनाथ राव, हिन्दू आईक्नोग्रफी, पृ० १६६, चित्र x LVIII. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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