Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram
Author(s): Brajendranath Sharma
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 16
________________ ब्रजेन्द्र नाथ शर्मा २५६ ] एन० बेनर्जी २८ और श्री सी० शिवराममूर्ति आदि ने इसे राहु बताया है । इन विद्वानों के अनुसार मध्यकालीन कला में राहु का इस प्रकार चित्रण किया जाता था । नीचे दिये नैषधचरित के श्लोक से भी इस मत की पुष्टि होती है । २६ 30 उत्तरी भारत की भांति दक्षिणी भारत में त्रिविक्रम की प्रतिमाएं बादामी की गुफा नं० ३ (छठीं श० के उत्तरार्ध ), ३ महाबलिपुरम् के गणेश रथ ( ७वीं श० ई०) तथा अलोरा ८वीं श० ई०) ३१ आदि अनेक स्थानों में उत्कीर्ण मिलती है ! ३२ इन प्रतिमात्रों में महाबलिपुरम् वाली प्रतिमा विशेष रूप से उल्लेखनीय है ( चित्र ६) । यह अष्टभुजी प्रतिमा अपने छः हाथों में चक्र, गदा, खड्ग तथा शंख, खेटक, धनुष प्रादि प्रायुध धारण किए है। दो रिक्त हाथों में दाहिना हाथ वैखानसागम के अनुसार ऊपर उठा है तथा साथ वाला बांया हाथ उठे हुए बाएं पैर के समानान्तर है । प्रतिमा के दोनों और पद्मासन पर चतुर्भुजी शिव एवं ब्रह्मा का चित्रण है तथा नीचे सूर्य एवं चन्द्र का अंकन हैं । ऊपर मध्य में वराहमुखी जाम्बवन त्रिविक्रम की विजय पर हर्षध्वनि कर रहा है और ऊपर वर्णित ओसियां की प्रतिमा की भांति नमुचि राक्षस भगवान् का दाहिना पैर पकड़े है । दक्षिण भारत में, मैसूर में हलेबिद के प्रसिद्ध होयसलेश्वर मन्दिर पर निर्मित त्रिविक्रम की प्रतिमा भी कम महत्व की नहीं है (चित्र ७ ) । मध्यकालीन होयसल कलां प्रत्यधिक सुसज्जित मूर्तियों एवं कोमल अलंकरण के लिए सर्वत्र विख्यात है । प्रस्तुत प्रतिमा काशीपुर की प्रतिमा की भांति ही शिल्परत्न के अनुसार है । त्रिविक्रम के उठे दाहिने पैर के ऊपर ब्रह्मा है, जो उसे गंगा के पवित्र जल से धो रहे हैं । नीचे बहती गंगा स्पष्ट रूप से दीखती है । कुशल कलाकार ने इसे नदी का रूप देने के लिए इसमें मछली एवं कछुयों का सुन्दरता से चित्रण किया है। पैर के नीचे प्रालीढासन में गरुड़ है, जिसके हाथ प्रञ्जली मुद्रा में हैं । त्रिविक्रम के बाएं पैर के समीप चामरवारिणी सेविका है । प्रतिमा के ऊपरी भाग में जो लतायें आदि हैं, उनका आशय सम्भवतः कल्पवृक्ष से है । इस प्रतिमा के देखने मात्र से ही मूर्तिकार की उच्चतम कार्यकुशलता का सहज ही में आभास हो जाता है । २८. दी डेवलपमेन्ट श्रॉफ हिन्दु ग्राईक्नोग्राफी, पृ० ४१६ २६. माँ त्रिविक्रम पुर्नाहि पदेते कि लगन्नजनिराहु रूपानत् । कि प्रदक्षिणनकृद्ामि पाशं जाम्बवान दित ते बलिबन्धे || - नैषध चरित, २१, ६६ ३०. गोपीनाथ राव, ऐलीमेन्टस श्रॉफ हिन्दु श्राईक्नोग्राफी, पृ० १७२ चित्र L ३१. वही, पृ० १७४, चित्र LI ३२. इस सम्बन्ध में हम त्रिविक्रम (८वीं श० ई०) की एक कांस्य प्रतिभा को भी ले सकते हैं जिसमें वे बायें पैर से आकाश नापते प्रदर्शित किये गए हैं । प्रस्तुत प्रतिमा सिंगनल्लूर ( जिला कोयम्बटूर ) के एक प्राचीन मन्दिर में अब भी पूजी जाती है । शिवराममूर्ति, सी, साऊथ इन्डियन ब्रान्जेज, पृ० ७१; चित्र १५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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