Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram
Author(s): Brajendranath Sharma
Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf

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Page 17
________________ 260 ] भारतीय मूर्तिकला में त्रिविक्रम पूर्वी भारत में बंगाल-बिहार की पाल तथा सेन कालीन प्रतिमानों में एक उठे पैर की कुछ मूर्तियां प्राप्त हैं / 33 किन्तु अधिकांश में त्रिविक्रम को पूर्ण विकसित कमल पर समभंग मुद्रा में खड़े (स्थानक) प्रदर्शित किया गया है (चित्र 8) / इन प्रतिमाओं में आयुधों का क्रम उसी प्रकार है जैसा कि हम उपर्युक्त वणित त्रिविक्रम की अन्य मूर्तियों में देख चुके हैं। वे किरीट-मुकुट, कर्णपूर, रत्नकुण्डल, हार, उपवीत, कटिबन्ध, वनमाला, वलय, वाहुकीर्ति, नूपुर, उत्तरीय तथा परिधान आदि धारण किये हैं / प्रतिमा के पैरों के पास लक्ष्मी व जया तथा सरस्वती व विजया हैं / 34 मुख्य मूर्ति के दोनों ओर मध्य में सवार सहित गज-शार्दल, मकरमख, तथा नुत्य एवं वीणा वादन करते गन्धर्व यगल हैं। सिर पीछे की कलात्मक प्रभावली के दोनों ओर बादलों में मालाधारी विद्याधर बने हैं। सबसे ऊपर मध्य में कीर्तिमुख है। पीठिका पर मध्य में विष्णु का वाहन गरुड, दानकर्ता एवं उसकी पत्नी एवं उपासकों के लघुचित्रण हैं। इस प्रकार से ये प्रतिमायें उन प्रतिमानों से सर्वथा भिन्न हैं, जिन पर एक ही साथ बलि द्वारा वामन को दिए जाने वाले दान का तथा उसकी प्राप्ति पर त्रिविक्रम द्वारा आकाशादि नापने का चित्रण मिलता है। भगवान् विष्णु की पूजा त्रिविक्रम के रूप में प्राचीन भारतवर्ष में विशेषरूप से प्रचलित थी। इसका अनुमान हम उनकी अनेकों प्रतिमानों के अतिरिक्त साहित्य एवं शिलालेखों से भी कर सकते हैं। इनका कुछ निदर्शन हम ऊपर कर चुके हैं / शिलालेखों से दो लेख उदधृत हैं। पायासूवं (ब) लिवन्च (च) न व्यतिकरे देवस्य विक्रान्तयः सद्यो विस्मित देवदानवनुतास्तिस्त्रस्त्रि (लो) की हरेः / यासु व (ब) ह्मवितोरार्णमघसलिलं पादारविन्दच्युतं / धत्ते द्यापि जगत्र (व) यैकजनकः पुरायं स मुर्छा हरः / / 35 तथा भग्नम् पुनर्नू तनमत्र कृत्वा ग्रामे च देवायतनद्वयं यः / पितुस् तथार्थेन चकार मातुस् त्रिविक्रमं पुष्करिणीभि माञ्च // 36 33. क्रेमरिश, स्टेल्ला, पाल एन्ड सेन स्कल्पचर, रूपन, अक्टबर 1626, नं० 40, चित्र 27; भट्टसाली एन० के०, आईकनोग्राफी प्रॉफ बुद्धिस्ट ऐन्ड ब्रह्म निकल स्कल्पचर्स इन दी ढाका म्यूजियम, पृ० 105, चित्र, XXXVIII; बेनर्जी, पार० डी०, ईस्टर्न इन्डियन स्कूल ऑफ मेडिवल स्कल्पचर्स, चित्र, XLVI 34. त्रिविक्रम की कुछ प्रतिमाओं में लक्ष्मी व सरस्वती के स्थान पर प्रायुध पुरुषों का भी चित्रण मिलता है / द्रष्टव्यः जर्नल ऑफ बिहार रिसर्च सोसाइटी, 1954, 40, IV, पृ० 413 तथाागे / 35. एपिग्राफिया इन्डिका, I, पृ० 124, श्लोक 2 व्ही, XIII, पृ० 285, श्लोक 24 इस लेख के लिखने में मुझे अपने श्रद्धय गुरु डा० दशरथ शर्मा, एम० ए०, डी० लिट से विशेष सहायता मिली है, जिसके लिए मैं उनका कृतज्ञ हूं। लेख में पाए चित्रों के लिए मैं ग्वालियर संग्रहालय, राष्ट्रीय संग्रहालय तथा प्रा० सर्वे ऑफ इन्डिया का आभारी हूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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