Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram Author(s): Brajendranath Sharma Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 1
________________ भारतीय मूर्तिकला में त्रिविक्रम यस्योरूषु त्रिषु विक्रमणेष्वधिक्षयन्ति भुवनानि विश्वा । य इदं दीर्घ प्रयतं सधस्थमेको विममे त्रिभिरित्पदेभि ।। यस्य त्री पूर्णा मधुना पदान्यक्षीयमारणा स्वधया मदन्ति । य उत्रिधातु पृथ्वीमुत द्यामेको दाधार भुवनानि विश्वा ।। - ऋग्वेद, १ १५४, २-४ बालिगो बापाबन्धे चोज्जणिउ पडतो। सुरसत्य कारणन्दो वामन रूवो हरि ज अह॥ गाथा सप्तशती,६ सृष्टि, पालन और संहार प्राणि-जगत् के अाधारभूत तत्त्व हैं । हिन्दु धर्म में त्रिदेवों की कल्पना इन्हीं तत्त्वों पर आधारित है । ब्रह्मा सृष्टि के, विष्णु पालन के तया महेश अथवा रुद्र संहार के देवता है । ' किन्तु वास्तव में जिस अभूतपूर्व देव की 'ब्रह्मा, विष्णु, शिव' रूप शक्तियां हैं, वह भगवान विष्णु का परम पद है : शक्तयो यस्य देवस्य ब्रह्मविष्णु-शिवात्मिका: । भवन्त्यभूतपूर्वस्य तद् विष्णोः परमपदम् ॥ विष्णु पुराण, १, ६, ५६ ब्रह्मा की पूजा प्रारम्भिक काल में विशेष प्रचलित थी, किन्तु आगे चलकर यह समाप्त-प्राय हो गई ।२ विष्णु और शिव की पूजा सम्पूर्ण भारत में अब भी होती है । विष्णु के दशावतार तो सर्वत्र १. ब्रह्मत्वे सृजते विश्वं स्थितौ पालयते पुनः । रुद्र रूपाय कल्पान्ते नमस्तुभ्यं त्रिमूर्तये ।। विष्णु पुराण, १, १६, ६६ २. ब्रह्मा का प्राचीन एवं प्रसिद्ध मन्दिर पुष्कर (अजमेर) तीर्थ में है। वहाँ अब भी उनके सम्मान में प्रतिवर्ष कात्तिक पूरिंगमा पर एक विशाल मेला लगता है। ब्रह्मा के प्राचीन मन्दिर एवं मूर्तियों के लिए देखें : बड़ोदा म्यूजियम की पत्रिका, ५, १६४७-८, पृ० ११.२१; मरूभारती, पिलानी, जनवरी, १९५५, पृ० ८५, ८६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 ... 17