Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram Author(s): Brajendranath Sharma Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 3
________________ २५४ ] भारतीय मूर्तिकला में त्रिविक्रम इस सलाह के अनुसार कार्य न करने पर शुक्राचार्य ने क्रोववश हत्य-प्रतिज्ञ बलि को शाप भी दिया: एवमद्वितं शिष्यमनादेशकर गुरु । शशाप देवप्रहितः सत्यसन्धं मनस्विनम् ।। भागवत पुराण, ८, २०, १४ । परन्तु बलि अपने विचार पर दृढ़ रहा । उसने कहा कि यज्ञ के समय यदि कोई उसका सिर भी दान में मांगे तो देने में उसे लेशमात्र हिचकचाहट न होगी। गोविन्द दान मांगे तो इससे बढ़कर बात क्या होगी? मैने तो अन्य (सामान्य) याचकों को भी मांगने पर नां नहीं की है : .. यज्ञऽस्मिन्यदि यज्ञेशो याचते माँ जनार्दनः । निजमूर्द्धनमध्यस्मै दास्याम्येवाविचारितम् ।। स मे वक्ष्यति देहीति गोविन्दः किमतो.धिकम् । नास्ती यन्नया नोक्तमन्येषामपि याचताम ।। वामन पुराण, ३१, २३ -२५ इस दान की महत्ता को भी सष्ट रूप में प्रकट करते हए राजा ने कहा, 'यदि दान रूपी इस श्रेष्ठ बीज को नारायण के हाथों में बो दिया जाये तो उससे सहस्त्रगनी फल-निष्पत्ति होगी: (तद्वीजदरं दानं बीजं पतति बेद् गुरो। जनार्दने महापाजो कि न प्राप्त स्ततो मया ॥ वामन पुराण, ३१. ३० । अतः बलि ने उनका स्वागत किया और उनसे यज्ञ में दान स्वमा मनचाही वस्तु मांगने को कहा । परन्तु वामन ने अत्यन्त चातुर्य से तीन पग थोड़ी सी भूमि की याचना की और शेष सब स्वर्ण. धन तथा रत्नादि याचको को देने की सलाह दी: तस्मात्त्वत्तो महीमोषः वृणेहं वरदर्षभात् । पदानि त्रीणि दैत्येन्द्र सम्मितानि पा मम ।। भात काय, १६. १६ ममाग्निशरणार्थाय देहि राजन् पदयम् । सुवरण प्रामरत्नादि तदर्थभ्यः प्रदीयताम ।। 4. पुराण, ३३, ४६ दान की पूर्ति के हेतु जैसे ही बलि ने कमण्डलु से संका जल वामन के हाथ पर डाला, वैसे ही वामन ने विराट रूप धारण कर अपना सर्वदेव मय रूप प्रदर्शित किया : ६. वामनादणुतमादनु जीयास्वं त्रिविक्तमंतनेभृतदिक्कः । नैषध चरित, २१, ६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17