Book Title: Bharatiya Murti kala me Trivikram Author(s): Brajendranath Sharma Publisher: Z_Jinvijay_Muni_Abhinandan_Granth_012033.pdf View full book textPage 4
________________ ब्रजेन्द्र नाथ शर्मा २५५ ] पाणौ तु पतिले तोये वामनोऽभूदवामनः । सर्वदेवमयं रूपं दर्शयामास तत्क्षणात ॥ वामन पुराण, ३१, ५३ प्रथम पग में भगवान ने समस्त भूलोक नाप लिया तथा दूसरे में त्रिविष्टप । बलि ने तीन पग भूमि देने का वचन दिया था। किन्तु नारायण के तीसरे पग को नापने के लिए अब कुछ शेष न बचा था: क्षिति पदकेन बलेविचक्रमे नभ : शरीरेण दिशश्च बाहुभिः । पदं द्वितीय क्रमतस्त्रिविष्टपं न वै तृतीयाय तनीयमप्वपि ।। __भागवत, ८, २०, ३३-१४ राजा बलि अब अपनी सब धन सम्पत्ति आदि दे देने के पश्चात् बन्दी बन गया। दत्त्वा सर्व धनं मुग्धो बन्धनं लब्धवान्जलि: ।। नैषधचरित, १७.८१ वरुगा पाश से बंधकर अब उसमें हिलने की भी सामर्थ्य न रही: __ प्रद्य याबदपि येन निबद्धौ न प्रभू बिचलितु बलिविन्ध्यौ । नैषध चरित, ५, १३० इसी समय ऋक्षराज जाम्बवान् ने उस विराट रूपी त्रिविक्रम की पदक्षिणा कर चारों दिशाओं में उनकी जय घोषणा की : जाम्बवानवृक्षराजस्तु भेरीशब्दमनोजवः । विजयं दिक्षु सर्वासु महोत्सवमबोषयत् ॥ भागवत, ८,२१,८ कुछ शेष न देखकर अव बलि ने अपने सिर को ही अन्तिम पग से नापने का निवेदन किया । उसके पास अपना बचन सत्य करने के लिए अब यही उपाय था : या तमरलोक भवान् ममेरितं वचो व्यलोकं सुखवयं मन्यते । करोम्पृतं तन्नभवेत् प्रलम्भनं पदं तृतीयं कुरु शीष्णि मेनिजम् ।। भागवत ८, २२, २ -बलि के यह शब्द सुनकर त्रिविक्रम अत्यन्त प्रसन्न हुए। अपना तीसरा पग उसके सिर पर रखकर त्रिविक्रम ने बलि को असुरों का राजा बनाया और उसे पाताल लोक में भेज दिया। इस प्रकार असूरों के राजा बलि से उसका साम्राज्य छीन और इन्द्र को वापस दिलाकर वामन · ने माता अदिति को प्रसन्न किया : ७. हरेर्यदक्रामि पदैककेन खं । नैषध चरित, १.७० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17