Book Title: Bharatiya Achar Darshan Part 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 495
________________ जैन - आचारदर्शन का मनोवैज्ञानिक पक्ष - से विषयों के सेवन की लालसा पैदा होती है। सुखद अनुभूति को पुनः पुनः प्राप्त करने की इच्छा और दुःख से बचने की इच्छा से ही राग या आसक्ति उत्पन्न होती है। इस आसक्ति प्राणी या जड़ता के समुद्र में डूब जाता है। काम-गुण (इन्द्रियों के विषयों) में आसक्त होकर जीव क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, घृणा, हास्य, भय, शोक तथा स्त्री, पुरुष और नपुंसक - सम्बन्धी वासनाएँ आदि अनेक प्रकार के शुभाशुभ भावों को उत्पन्न करता है । उन भावों की पूर्ति के प्रयास में अनेक रूपों (शरीरों) को धारण करता है । इस प्रकार, इन्द्रियों और मन के विषयों में आसक्त प्राणी जन्म-मरण के चक्र में फँसकर विषयासक्ति से अवश, दीन, लज्जित और करुणाजनक स्थिति को प्राप्त हो जाता है। 37 493 बौद्ध - दृष्टिकोण - इच्छा की उत्पत्ति का विश्लेषण करते हुए बुद्ध कहते हैं- रागस्थानीय विषयों को लेकर चित्त में वितर्क पैदा होते हैं, उनसे छन्द (इच्छा) की उत्पत्ति होती है । छन्द (इच्छा) के उत्पन्न होने पर चित्त उन विषयों से संयुक्त हो जाता है, यही चित्त की आसक्ति है ।" यही आसक्ति राग है। भगवान् बुद्ध के अनुसार राग की उत्पत्ति के दो हेतु हैं- 1. शुभ (अनुकूल) करके देखना और 2. अनुचित विचार । द्वेष की उत्पत्ति के दो हेतु हैं- 1. प्रतिकूल करके देखना और 2. अनुचित विचार ।" यहाँ यह अवश्य स्मरण रखने की बात है कि बौद्ध-विचारणा चेतना को प्रमुखता देने के कारण इच्छा या राग- - द्वेष की उत्पत्ति के कारण को भी मूलतः चैत्तसिक मानती है। सुत्तनिपात में शूचिलोम यक्ष बुद्ध से पूछता है कि राग-द्वेष, रति- अरति और चित्तवितर्क या संकल्प का उद्गम क्या है ? बुद्ध कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष के तने से प्ररोह निकल जाते हैं, वैसे ही ये सभी आत्म के इष्ट-भाव के कारण उत्पन्न होते हैं। यह इष्टभाव या तृष्णा दो प्रकार की मानी गई है- 1. भवतृष्णा और 2. विभवतृष्णा । ये दोनों तृष्णाएँ ही बौद्ध दर्शन में व्यवहार की नियामक हैं। गीता का दृष्टिकोण- गीता - भाष्य में आचार्य शंकर लिखते हैं कि इन्द्रियों के अनुकूल सुखदायक विषयों के अनुभव की चाह ही तृष्णा है, आसक्ति या काम है | 10 गीता में भी जैन - दर्शन के समान यही दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया है कि मन से इन्द्रियों के विषयों का चिन्तन करने पर उन विषयों के सम्पर्क की इच्छा उत्पन्न होती है और उससे सक्ति का जन्म होता है। आसक्ति के विषयों की प्राप्ति में जब बाधा उत्पन्न होती है, तो क्रोध (घृणा) उत्पन्न हो जाता है। क्रोध में मूढ़ता या अविवेक, अविवेक से स्मृतिनाश और स्मृतिनाश से बुद्धि - नाश हो जाता है और बुद्धि के विनष्ट होने से व्यक्ति विनाश की ओर चला जाता है । 1 निष्कर्ष - इस प्रकार, वासना, काम या तृष्णा से राग-द्वेष के प्रत्यय निर्मित होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554