Book Title: Bharatiya Achar Darshan Part 01
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 516
________________ 514 भारतीय आचार-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन सभी बन्धनरूप हैं, अत: उन मनोव्यापारों का सर्वथा निरोध कर देना ही निर्विकल्प समाधि है और यही नैतिक-जीवन का आदर्श है। जैन, बौद्ध और गीता के आचार-दर्शनों में इच्छा-निरोध और मनोनिग्रह के प्रत्यय को स्वीकार किया गया है। जैन-दर्शन में मनोनिग्रह- उत्तराध्ययनसूत्र में कहा गया है, यह मन दुष्ट और भयंकर अश्व के समान चारों दिशाओं में भागता है,26 अत: साधक संरम्भ, समारम्भ और आरंभ में प्रवृत्त होते हुए इस मन का निग्रह करे। आचार्य हेमचन्द्र कहते हैं कि आंधी की तरह चंचल मन मुक्ति के इच्छुक एवं तप करने वाले मनुष्य को भी कहीं का कहीं ले जाकर पटक देता है, अत: मन का निरोध किए बिना जो मनुष्य योगी होने का निश्चय करता है, वह उसी प्रकार हँसी का पात्र बनता है, जैसे कोई पंगु पुरुष एक गाँव से दूसरे गाँव जाने की इच्छा करके हास्यास्पद बनता है। मन का निरोध होने पर कर्मास्रव भी पूरी तरह रुक जाता है, क्योंकि कर्म का आसव मन के अधीन है, किन्तु जो पुरुष मन का निरोध नहीं कर पाता, उसके कर्मों की अभिवृद्धि होती रहती है, अतएव जो मनुष्य कर्मों से अपनी मुक्ति चाहते हैं, उन्हें समग्र विश्व में भटकने वाले लम्पट मन को रोकने का प्रयत्न करना चाहिए। बौद्ध-दर्शन में मनोविग्रह- धम्मपद में कहा गया है कि यह चित्त अत्यन्त चंचल है, इस पर अधिकार कर कुमार्ग से इसकी रक्षा करना अत्यन्त कठिन है, इसकी वृत्तियों का कठिनता से ही निवारण किया जा सकता है, अत: बुद्धिमान इसे ऐसे ही सीधा करे, जैसे इषुकार (बाण बनाने वाला) बाण को सीधा करता है। यह चित्त कठिनता से निग्रहित होता है, अत्यन्त शीघ्रगामी और यथेच्छ विवरण करने वाला है, इसलिए इसका दमन करना ही श्रेयस्कर है, दमित किया हुआ चित्त ही सुखवर्द्धक होता है। गीता में मनोनिग्रह- गीता में कहा गया है कि यह मन अत्यन्त चंचल, विक्षोभ उत्पन्न करने वाला और बड़ा बलवान् है, इसका निरोध करना आयु को रोकने के समान अत्यन्त दुष्कर है। कृष्ण कहते हैं कि निस्संदेह मन का विग्रह कठिनता से होता है, फिर भी अभ्यास और वैराग्य के द्वारा इसका निग्रह सम्भव है और इसलिए हे अर्जुन ! तू मन की वृत्तियों का निरोध कर इस मन को मेरे में लगा। योगवासिष्ठ में कहा है कि मन की उपेक्षा से ही दुःख पहाड़ की चोटी के समान बढ़ते जाते हैं और मन को वश में करने पर वैसे ही नष्ट हो जाते है, जैसे सूर्य के सम्मुख हिम नष्ट हो जाता है। आधुनिक मनोविज्ञान में मनोनिग्रह; एक अनुचितधारणा- मनोनिग्रह के उक्त संदर्भो के आधार पर भारतीय नैतिक-चिन्तन पर यह आक्षेप लगाया जा सकता है कि वह आधुनिक मनोविज्ञान की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। आधुनिक मनोविज्ञान इच्छाओं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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