Book Title: Bhagwati Sutram
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीभग
वती
सूत्रम्
| हारयोग्य स्कंध परिणामेनावस्थानं इत्यर्थः, भावओ वण्णमंताई गंधमंताई रसमंताई फासमंताई आहारेति, जाई भावओ वण्णमंताई आहारेंति ताई किं एगवण्णाई आहारेति जाव किं पंचवष्णाई आहारैति ? गोयमा ! ठाणमग्गणं पडुच्च एगवण्णाईपि आहारैति जाव पंचवण्णाईपि आहारैति, विहाणमग्गणं पडुच्च कालवण्णाईपि आहारैति जाव सुकिल्लाइंपि आहारेंति, तत्र 'ठाणमग्गणं पडुच्च' ति तिष्ठ न्त्यस्मिन्निति स्थानं - सामान्यं यथैकवर्णमित्यादि, 'विहाणमग्गणं पडुच्च' त्ति विधानं - विशेषः कालनीलादिरिति ६, जाई वष्णओ कालवण्णाई आहारैति ताई किं एगगुणकालाई आहारेंति जाव दसगुणकालाई आहारैति ? संखेजगुणकालाई० असंखेजगुणकालाई ० अनंतगुणकालाई आहारैति ?, गोयमा ! एगगुणकालाईपि आहारैति जाव अनंतगुणकालाईपि आहारैति ७, एवं नीलवण्णाई ८, पीयवण्णाई ९, रत्तवण्णाई १०, सुकिल्लाई ११, एवं गंधओऽवि सुभिगंधाई १२ दुब्भिगंधाई १३, रसओवित्ति जाई भावओ रसमंताई किं तित्त १ कडुय २ अंबिल ३ महुर ४ कसाय ५ परिणयाई आहारेंति १८, एवं जाई भावओ फांसमंताई ताई ठाणमग्गणं पडुच्च णो एगफासाई आहारैति णो दुफासाई आहारेंति नो तिफासाई आहारंति, एकस्पर्शानामसंभवात्, अन्येषां चाल्पप्रादेशिकतासूक्ष्मपरिणामाभ्यां ग्रहणायोग्यत्वात्, चउफासाईपि आहारैति जाव अठ्ठफासाइंपि आहारंति, बहुप्रदेशताबाद रपरिणामाभ्यां ग्रहणयोग्यत्वादिति, यथा एकस्मिन् सहकारे गुरुत्वं १ मृदुत्वं २ शीतत्वं ३ स्निग्धत्वं ४ एवं चत्वारः स्पर्शाः, एतद्विपरीतास्त्वन्ये चत्वारः स्पर्शाः ज्ञेयाः, विहाणभग्गणं पडुच्च कक्खडाईपि आहारैति जाव लुक्खाईपि आहारैति १९, जाई फासओ कक्खडाई आहारैति ताई किं एगगुणकक्खडाई आहारैति जाव अनंतगुणकक्खडाईपि आहारेंति ?, गोयमा ! एगगुणकक्खडाईपि जाव अनंतगुणककूखडाईपि आहारेंति २०-२७, एवं अवि फासा भाणियव्वा जाव अनंतगुणलुक्खाई आहारेंति, ताई किं पुहाई आहारेंति अपुठ्ठाई आहारैन्ति ?, गोयमा !
१ शतके १ उद्देशः
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