Book Title: Bhagwati Sutram
Author(s): Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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श्रीभग-
१ शतके
वती-
दिप्रथमवृहद्ग्रासनहायन्ति, शेपास्तु किट्टीभूय मनुष्याम्यवादन रसनादीन्द्रियद्वारेणोपलभन्ते २० जाति णो सव्वे ।।
सूत्रम्
सर्वाण्येवाहारद्रव्याणि आपलानामनन्तभागमाखादयन्ति, हताहारवन्मलीभवन्ति, न शरीरमा राहुः असंखिजइभागमा-IT उद्देशः
गमाहारेंति, अणंतभागमासाएंति, 'सेयालंसिति एष्यत्काले, ग्रहणकालोत्तरकालमिति, 'असंखेज'त्ति अत्र केचिदाहुः-गवादिप्रथमबृहद्ग्रासग्रहणमिव कश्चिद् गृहीतासंख्येयभागमात्रान् पुद्गलानाहारयति, तदन्ये तु पतन्ति, अन्ये पुनराहुः असंखिज्जइभागमाहारेंतित्ति शरीरतया परिणमयन्ति, शेपास्तु किट्टीभृय मनुष्याभ्यवहृताहारवन्मलीभवन्ति, न शरीरत्वेन परिणमन्तीत्यर्थः, 'अणंतभागंति आहारतयाऽऽत्तपुद्गलानामनन्तभागमाखादयन्ति, तद्रसादीन् रसनादीन्द्रियद्वारेणोपलभन्ते ३८, 'सव्वाणि वत्ति सर्वाण्येवाहारद्रव्याणि आहारयन्ति, तचैवं-नेरइया णं भंते ! जे पोग्गला आहारत्ताए परिणमंति ते किं सव्वे आहारेंति णो सव्वे आहारेति ?, गोयमा सव्वे अपरिसेसिए आहारेंति, इह विशिष्टमहणगृहीता आहारपरिणामयोग्या एव ग्राह्याः,उज्झितशेषा इत्यर्थः, | अन्यथा पूर्वापरसत्रयोविरोधः स्यात् , दृष्टा चैवं व्याख्या, यदाह-"जंजह सुत्ते भणियं तहेव जइ तं वियालणा णत्थि । किं कालियाणुओगो दिछो दिहिप्पहाणेहिं ? ॥१॥३९, कीसव'तिपदे पदसमुदायोपचारात् कीसत्ताएत्ति दृश्य, स्वभावतया कीदृशतयाकेन प्रकारेण किंरूपतया 'भुजोत्ति भूयो भूयः परिणमन्ति आहारद्रव्याणि, नेर० जे पोग्गले आहारत्ताए गिण्हंति ते णं तेसिं| पोग्गला कीसत्ताए भुञ्जो २ परिणमंति ?, गोयमा! सोइंदियत्ताए जाव फासिंदियत्ताए, अणिकृत्ताए अकंतत्ताए अप्पियत्ताए अमणुन्नत्ताए अमणामत्ताए अणिच्छियत्ताए अभिज्झियत्ताए अहत्ताए नो उदृत्ताए दुक्खत्ताए नो सुहत्ताए एएसिं भुजो २ परिणमंति, तत्रानिष्टतया सामान्येनावल्लभतया, अकांततया सदा सद्भावेनाकमनीयतया, अप्रियतया सर्वेषामेव द्वेष्यतया, अमनोज्ञतया कथयाऽप्यमनोरमतया, अमनोगम्यतया चिन्तयापि अमनोगम्यतया, अनीप्सिततया आप्तुमनिष्टतया, एकार्थाश्चैते शब्दाः, अभिज्झियत्ताए-अभिध्येयतया, तृप्तेरनुत्पादकत्वेन पुनरप्यभिलाषनिमित्ततया, अहत्ताएत्ति गुरुपरिणामतया, नो उड्डत्ताए, नो
BA N NILOwimmmwinmunitainmritiummmmmmmISORRISHAIL Malaiமம்பாயையையை
॥६॥
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