Book Title: Bhagavana  Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Author(s): Chandanamati Mata
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 639
________________ स्थान्नित्यत्व SEB . . 4 मसा: - शकश आवाय मां-सेन (1943-968) कृत स्यादाद न्यायक मनमक स्वच्छंद - Svatefruneta. रात भाव | Self-willed, unrestrained. स्यान्नित्यत्व - Syrutattva. अपनी इच्छा के अनुसार कार्य करने वाला। Eternity of some particular characterstic in स्वच्छंदवृति-Svarnhutinea Vini matter. Restraintless conduct. द्रव्य के सामाना 1 स्वभावों में एक स्वभाव। अपनी अपनी स्वानुवार शाम करन्ग । नाना पर्यायाने 'यह वही है। इस प्रकार एब्ध की प्राप्ति कथंचित स्वच्छन्दश्रोता - SuchanaSrotii. नित्य गाय है। मष्टा Unworthy or restraintless Isteners - Srasti. पापात्र श्रोता। भ्याय श्रोताओं को विद्या देना संशार और भय The crealor. को ही ग्वाटेमाला है। बना वाला, विधे, पष्टा, विधाता, देत. पुरस्कृत, कर्म और श्पर ये सब कर्मरूपी ईश्वर के पर्यायवाचक है। स्वच्छाहार -Surrhohara. स्रोतस्विनी-Srotasvini. Pure tood. शुद्ध सात्विक आहार। RIVE! नदी। स्वत: सिह-itiah Sidaltus, स्व-Sir Seit proved or evident जो स्वमात्र से ही सिद्ध हो उसे स्थान निद्ध कहत है अथना सत्, Self. personal, own. रुपना, निजी, आत्मपरक या अपनी जाति रोसबा रखने वाला। प्य का स्वभाव जो स्यभावही सिद्ध है. इसलिये वह अनादि अनंत है। स्व-अहिंसा - SHE-Ahinsii. स्वतंत्र -Svarantra. Pure nature of soul. जीव का शुद्ध स्वभाव ही स्वअहिंसा है। Independent, Free, restrictionless. जो पर की अपेक्षा नहीं करता। स्व-उपकार -SveUpakaru. Benefitting self (reg. soul) स्वतत्व-Sirutarva आत्मठित । Real nature of the soul, स्वकाल निर्जरा - 5trakila Nirjarti. जीव के निज भाव-औपशमिक, क्षायिक,सायोपगापिक, औदयिक Desiruction of Karmas on their maturation. और गरिषामिक भाव। जिसके दो भेदों में एक भेद, सविणक निर्जरा गौ स्वकाल गोमट अशिशिजंग गो रखकाना स्वदार संतोष - Svadira Santosn. पक्व होकर चारो मानियाले जीवों की होती है। Satisfaction with own wife. स्वक्षेत्र - Svaksetra. अपनी विवाहित स्त्री में ही सतुष्ट रहना और शेष स्त्रियों के प्रति Occupied space of matters. माता, बहिन, पुत्रीवन निर्मल भाव रखना। इसे बचायोगात एक दव्य जितने क्षेत्र को रोक करके रस्ता है वह उस द्रव्य का कहते हैं। मतलब, और अन्य क्षेत्र उसका प क्षेत्र है। स्वद्रव्य-5vadravya. स्वगुरु-स्थापनाशप्ति क्रिया - The soul Sungura Sthapurdveipti Kriyu. आत्मगव्य अधात अविनाशी,विकार रष्ठित केवलज्ञानवी आत्मा A type ol auspicious activity, entrusting the responsibtlity of graup by the chlet salnt to स्वद्रव्य रति - Svattrarya Reti. other suceeding saint Devotion in one-sell. गान्चय की 53 क्रियाओं में 23वीं किया। गुरु की पाति स्वयं आस्नद्रव्य में प्रेन या तल्लीगला होना (स्वतव्य रति ही सुगति भी अकस्य विशेष को प्राप्त हो जाने पर संघ से योग्य शिष्य को का कारण है। छोटकर उसे गुरु पद का भार प्रदान करना । स्वनिवा-Sunaindia. स्ववतुष्टय -Sracatustaya. Self-criticism. A Quattol relaled lo the nature of matter आत्म निदा। उच्च गोत्र के आरव का एक कारण । ट्रप्य के स्वमाय भूत -क्षेत्र-काल-भाय स्वयतुष्टय । स्वनिमित्तक उत्पाद-Siranimitakallpriria. स्वचारित्र - Svararitra. Modification or change due to own causes (reg. Super right conduct. any matter). त्यरूपाचरण चारित्र अध्या वीतराग चारित्र का अपरनामा ग्य के नमिरा से होने वाला पारेगमन, प्रत्येक प्य में शगशल रणरशान अन से इस शात्रि का प्रारधीकरण होता है। गुण का छह स्थान पतित ठानि और वृद्धि के द्वारा यसन होता

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