Book Title: Bhagavana  Mahavira Hindi English Jain Shabdakosha
Author(s): Chandanamati Mata
Publisher: Digambar Jain Trilok Shodh Sansthan

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Page 644
________________ Lord Mahavir Hindl-English Juin Dictionary 393 स्वस्थान गोपुच्छा कराया आला है। वतव्यता केसी पेदों में एक भेद। जिना शास्त्र में स्पसमय का स्वपचनशधित-Suyaveeranchattirera. हीन किया आत उसे स्थपर AIMAA कहते है और Sell abstructive speech. उसके मात्र को अमर्गद उसमें रखने वाली विशेषता को स्वरुपय बापित विषय रेत्वाभास के+भेवो में अंतिम भेद। जिसके यक्त्तव्यता कहते ।। साध्य में अपने यचन से ही बाधा आती है। जैसे - भेरी नाता स्वसहाय-Svarnhāva. गया है क्योकि पुरुष का संयोग होने पर भी उसके गर्भ नहीं Absolutely Independent बहरता। सन् । जो स्वभाव से ही सिद्ध, इलिये यह अनादि अनंत है, स्ववश-Sravasa. चसहाय है, निर्विकल्प है। Own control or self controlled स्वस्तिक- Swastika. आत्मवश. जो परवाथ को त्यागकर निर्मल स्वभाव वाले आस्मा Narie oramiandrranimountaln in shadraital को ध्या है वह स्यवश है। forest situated in Viele Asherm (region), Name of summits situated al Vidyulprah Gajirtant स्ववात्सल्य - ravalkalya. Kurtul mountains, Name of a governo delty Salf anection. of Maniprabu summit of kunder mountain. वात्सल्य के दो भेदों में एक भेद । स्यद्वय्य में रति अर्थात अपनी विदेह क्षेत्र में स्थित भाशाल में एक दिग्गजेन्ट पर्वत, विद्यापन आत्मा से सम्बन्ध रखने वाला यात्सल्य प्रधान है। गजदन्तश व रूचक पर्वतस्थाक-एक फूट, कुण्डल पर्वतस्थ SHAmrti. गणिप्रभ कूट का स्वामी नागेन्द्र । Contemplation about selt. स्वस्तिक-Svastukar. आत्मा में प्रवृत्ति रूप ध्यान अर्थात् बाह्य चिंताओं से निवृत्ति होना। An auspicious omblem, a fyltot, If is also the स्पसंयोगी-Svazawityogi. significant symbol of Lord Suparshvanath 2 Something self correlative. one of the à auspicious articles. भंग का एक भेद। जहाँ निज भार के भेद का संग रूप ही भंग हो यह पवित्र और कल्याणकारी भिन्न है, इसका उपयोग मापन पहचसंयोगी है। जैसे-नायिका राप्ययप एवं क्षायिक चारित्र कार्यों में होता है। यह सुपावन अगवान का चिन्ह भी है। पाला दिसंयोगी क्षायिक भाव । अष्टपगल द्रव्यों में से एका। इसका अपरनाम सुमतित है। स्वसंवेदन-Svashirvedana. स्वस्वी -Svasti. Sell experience or ntultion. Own wie accepted with social customs & HUAS आत्मानुभव, आत्मज्ञान । देव शास्त्र गुरु को नमस्कार पार तथा अपने पाई बन्धुओ की स्यसंवेदनशान-5vasanetana Jiiina. साक्षी पूर्वक जिस कन्या के साथ विवाह किया जाताईबह विवाहिता स्त्री पवस्वी कहलाती है। The right knowledge about all. Anather rame of Nishchay Mokshmarg (path of salvation). स्वस्थान अप्रमठ- Swasthana Apramavta आत्मशान. निश्चय मौवमार्ग का अपरनाम । The first phase of the 7th spirtual slage of स्वसंवेद्य सुख - Svasurnvedya Sukla. development-unstable stage of meditation Spirtual bliss. सातवे गुणस्थान के दोदो में प्रथम भेद । जब तक चारित्रमोशनीय अलीन्द्रित या आल्मिक सुखा निर्विकल्प ध्यान में स्थित परम योगियों की 21 प्रकृतियों के उपशमन संथा क्षपण के कार्य का प्रारम्भ के रागादि के अभाव से उत्पन्न क्या आलिया सुख है। नहीं होला, किन्तु मज्वल के मंदोदय के कारण प्रमादमी नाही होना, केवल मामाग्य ध्यानावस्था रहती है, तब तक यह अवस्था स्वसमय-Svasanaye. निरतिशय या स्वस्थानाप्रमात कहलाती है Jaina philosophy, Jaina spiritual treatisan, Engrovmant Into sall, salt absorption. स्वस्थान गुणकार -Swasthana Gunakāra. जैम सिद्धांत, आध्यात्मिक गंध, स्वपक्ष प्रतिपादन करने वाले Multiple results of Karmos related to the span न्याय ग्रंथा समयसार के अनुसार पर पदार्थो से अपने al Kristins. उपयोग को अपने आस्मा में रमाप्त कराना, स्वचारिन । अथवा जो प्रत्येक संपाटि अमास प्रथम अंतरकृति से अंतिम दर्शन, ज्ञान और चारित्र में स्थित होकर (गदलप होकर) रहता अंतराष्टिपर्यन्त अनुमा अन्स-अनंतागुणा है परन्तु सनी इस है यह स्वसमय (मुक्त जीव) है। अनन्त गुणकार का प्रमाण समान है. इसे स्वस्थान गुणकार स्वसमय प्रवृति-SvasdmayaPravriti करते है। Engrossment inlo salt स्वस्थान गोपुच्छा - Svaarhana Gopuccha. स्वरूप में वरमा करना चारित्र है, स्वसमय में प्रकृति कास्मा इसका Reducing soquanca of Karmic foculis related अर्थ है। देखें- स्वसमय । toKrishries). विवक्षित एक संग्रह कृत्रि में जो अंतरवृष्टियों के विशेष व्य) स्वसमय वक्तव्यता-Svaramaya Vakravyatd. घटसा हम पाया जाता है उसे स्वस्थान गोपुच्या बाहते है। Pertaining to spiritual meaninga.

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