Book Title: Bhadrakirti Suri ki Stutiyo ka Kavyashastriya Adhyayana Author(s): Mrugendranath Jha Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 4
________________ Vol. III - 1997-2002 भद्रकीर्ति.... ३०३ यहाँ श्री सूरिजी के सरस्वतीकल्प के पाठ मात्र से पाठक स्वतः ही माँ शारदा की छवि के प्रति भावुक हो जाते है जिस तरह के छवि के वर्णन में कवि ने अपनी प्रौढ़ता दर्शायी है अतः पण्डितराज का 'रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम् १९ इस काव्य परिभाषा का भी अक्षरशः निर्वाह होता है । अतः काव्यत्व में किसी प्रकार का सन्देह नहीं है । भद्रकीर्ति योग के भी मर्मज्ञ थे ऐसा आभास उनके सरस्वतीकल्प से स्पष्ट होता है यह काव्य प्राञ्जलता, गेयता, मंजुलता, तथा छन्द के नियमों का अक्षरशः निर्वाह करनेवाला एवं भावपूर्ण है । प्रसंगोचित शब्दों का प्रयोग इसकी विशेषता है, जो कम कवियों में पाया जाता है। इन्होंने सिद्धसरस्वतीकल्प एवं शारदास्तोत्र में मन्त्र एवं उनके उपयोग की विधि बतायी है जो उनको मान्त्रिक होना सिद्ध करती है । (वे चैत्यवासी आम्नाय के मुनि थे ।) T ('श्रीसरस्वतीकल्प' ला० द० भे० सू० २४६७५ के आधार पर मैंने प्रस्तुत किया है उसमें कहीं कहीं पाठान्तर हैं जिसको मैंने पादटिप्पणी में दिखाया है। यहाँ सिद्धसरस्वतीसिंधु, संग्राहक आचार्य श्री चन्द्रोदयसूरि तथा प्रकाशक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ जैन मन्दिर रांदेर रोड, श्वे. मूर्ति तपागच्छ जैन श्री संघ, अडाजण पाटीया, सूरत से १९९४ ई० में प्रकाशित सरस्वतीकल्प के पाठान्तर को पा० १ तथा साराभाई मणिलाल नवाब द्वारा १९९६ ई. में प्रकाशित श्री भैरवपद्मावती कल्प के 'श्रीसरस्वतीकल्प' के पाठान्तर को पा॰ २ से दिखाया गया है। उसी प्रकार 'सिद्धसारस्वतस्तव' का पाठान्तर उपर्युक्त 'सिद्धसरस्वतीसिंधु' के आधार पर लिया गया है। शेष दो की अन्य प्रति नहीं मिलने के कारण उद्धृत पाठ को ही प्रमाण मानकर मैंने उनकी समीक्षा की है । उपलब्ध मूल श्लोकों को आर्ष प्रयोग मानकर विना कोई परिवर्तन किये ज्यों का त्यों उद्धृत किया गया है। इस में मिली श्री अमृतभाई पटेल की सराहनीय सहायता के लिए आभारी हूँ ।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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