Book Title: Bhadrakirti Suri ki Stutiyo ka Kavyashastriya Adhyayana Author(s): Mrugendranath Jha Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf View full book textPage 9
________________ ३०८ मृगेन्द्रनाथ झा Nirgrantha भवदनुग्रह लेश तरङ्गिता स्तदुचितं प्रवदन्ति विपश्चितः । नृपसभासु यतः कमलाबला कुचकलाललनानि वितन्वते ॥६॥ आपकी लेशमात्र कृपा से ही विद्वान् राजसभा में काव्य पाठ करते हैं, जिससे कामिनी के स्तनों की तरह उनकी लक्ष्मी की क्रीड़ा बढ़ती जाती हैं अर्थात् काव्यपाठ द्वारा विपुल धन की प्राप्ति होती हैं ॥६॥ गतधना अपि हि त्वदनुग्रहात् कलित कोमलवाक्य सुधोर्मयः । चकित बाल कुरङ्गविलोचना जनमनांसि हरन्तितरां नरः ॥७॥ निर्धन होते हुए भी विद्वान् आपकी कृपा से बालमृग की आँखों के समान अपनी कोमल अमृतमयीवाणी से लोगों का मन हर लेते हैं ॥७॥ करसरोरुह खेलन चञ्चला । तव विभाति वरा जपमालिका । श्रुतपयोनिधिमध्यविकस्वरो ज्ज्वलतरङ्गकलाग्रहसाग्रहा ॥८॥ आपके हाथरूप कमल में क्रीड़ा करने में चपल, शास्त्ररूप समुद्र के निर्मल तरङ्ग को ग्रहण करने का आग्रह रखनेवाली जपमाला आपके करकमल में शोभती है ॥८॥ द्विरदकेसरिमारि भुजङ्गमा सहन तस्कर-राज-रुजां भयम् । तव गुणावलि-गान-तरङ्गिणां न भविनां भवति श्रुतदेवते ! ॥९॥ आपके गुण-गान करनेवाले शास्त्रज्ञों को हाथी-सिंह-महामारी-साँप-चोर शत्रु-राजा तथा रोग का भय नहीं होता हैं ॥९॥ (स्त्रग्धरा) ॐ ह्रीं क्लीं ब्ली ततः श्री तदनु हसकल हीमथो एँ नमोऽन्ते लक्षं साक्षाज्जपेद् यः करसमविधिना सत्तपा ब्रह्मचारी । निर्यान्ती चन्द्रबिम्बात् कलयति मनसा त्वां जगच्चन्द्रिकाभां सोऽत्यर्थं वह्निकुण्डे विहितघृतहुतिः स्याद्दशांशेन विद्वान् ॥१०॥ जो ब्रह्मचारी कर समविधि से "ॐ ह्रीं क्लीं ब्लीं श्रीं ह-स-क-ल ह्रीं ऐं नमः" आपके चन्द्रमण्डल से निकलते हुए स्वरूप को स्मरण करते हुए इस मन्त्र का जो कोई एक लाख जप करता है तथा उसका दशांश संख्यक घी की आहुति से हवन करता है वह विद्वान् होता है ॥१०॥ (३) राः, (४) ब्लूँ. (५) ट् स् क् ल् । * किसी मन्त्र का प्रयोग मन्त्रवेत्ता के परामर्श के अनुसार ही करना चाहिए। For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org For Private & Personal Use OnlyPage Navigation
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