Book Title: Bhadrakirti Suri ki Stutiyo ka Kavyashastriya Adhyayana
Author(s): Mrugendranath Jha
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf
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Vol. III-1997-2002
भद्रकीर्ति....
३०९
(शार्दूलविक्रीड़ितम्) रे-रे लक्षण-काव्य-नाटक-कथा-चम्पू समालोकनेक्वायासं वितनोषि बालिश ! मुधा किं नम्रवक्ताम्बा जीज!) भक्त्याऽऽराधय मन्त्रराज महसाऽनेनानिशं भारती
येन त्वं कविता वितान सविताऽद्वैत प्रबुद्धायसे ॥११॥ अरे, कमल के समान झुके हुए मुखवाले अज्ञानी ! तुम लक्षण-काव्य-नाटक-कथा-चम्पू आदि को देखने में क्यों परिश्रम करते हो? तम भक्तिपूर्वक मन्त्रराज रूप सरस्वती की प्रतिदिन उपासना करो, जिससे बुद्धिवाले हो जाओगे तथा तुम्हारी कविता चारों दिशाओं में सूर्य के समान यश फैलायेगी ॥११॥
चञ्चच्चन्द्रमुखी प्रसिद्धमहिमा स्वाच्छन्द्यराज्यप्रदा नायासेन सुरासुरेश्वरगणै रभ्यर्चिता भक्तितः । देवी संस्तुतवैभवा मलयजालेपङ्गिरङ्गद्युतिः
सा मां पातु सरस्वती भगवती त्रैलोक्यसंजीवनी ॥१२॥ झिलमिलाते चन्द्र के समान मुखवाली, प्रसिद्ध महिमावाली, प्रयास विना स्वच्छन्दतारूप राज्य को देनेवाली, देवदानवों के द्वारा भक्तिपूर्वक पूजित, श्रीखण्ड चन्दन के लेप से वैसे ही रङ्ग की प्रभावाली, तीनों लोक की सञ्जीवनी समान सरस्वती मेरी रक्षा करें ॥१२॥
(द्रुतविलम्बित) स्तवनमेतदनेक गुणान्वितं
पठति यो भविकः प्रमनाः प्रगे । स सहसा मधुरैर्वचनामृत
नूपगणानपि रञ्जयति स्फुटम् ॥१३॥ प्रसन्न चित्त से जो कोई प्रात:काल इस अनेक गुणों वाले स्तोत्र का पाठ करता है वह मधुर वचन रूप अमृत से राजाओं को प्रसन्न करता है (फलस्वरूप लक्ष्मी की प्राप्ति होती है ।) ॥१३॥
(६) सहितां दिव्यप्रभा । + यह हिस्सा सुप्रसिद्ध सरस्वतीस्तुतिमुक्तक 'या कुन्देन्दु' के अंतिम चरण में दृष्टिगोचर होता है ।
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