Book Title: Bhadrakirti Suri ki Stutiyo ka Kavyashastriya Adhyayana
Author(s): Mrugendranath Jha
Publisher: Z_Nirgrantha_1_022701.pdf and Nirgrantha_2_022702.pdf and Nirgrantha_3_022703.pdf

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Page 7
________________ ३०६ मृगेन्द्रनाथ झा Nirgrantha अष्ट दल, द्वादश दल, और षोड़श दलवाले कमल पत्र पर वाग्बीज और स्मरबीज मन्त्र को लिखकर काले रंग से घेर दें उसके बाहर किरणयुक्त सूर्य लिखें अब कमल के दूसरे दल पर सरस्वती का बीजाक्षर और ककारादि वर्ण लिखें अब सूर्य जिस दल पर लिखा हो उसको अन्य दलों से अच्छी तरह ढंक दे यह सारस्वत यन्त्र हुआ ॥९॥ ओमैं श्रीमनु सौं ततोऽपि च पुनः क्लीं वदौ वाग्वादिन्येतस्मादपि ही ततोऽपि च सरस्वत्यै नमोऽदः पदम् । अश्रान्तं निजभक्तिशक्तिवशतो यो घ्यायति प्रस्फुटम् बुद्धिज्ञानविचारसार सहितः स्याद् देव्यसौ साम्प्रतम् ॥१०॥ "ॐ ऐं श्रीं सौं क्लीं वद-वद वाग्वादिनि ह्रीं सरस्वत्यै नमः" उत्साह तथा भक्तिपूर्वक इस मन्त्र को जो विधि विधान से ध्यान करता है देवी सम्यक् विचार, बुद्धि एवं ज्ञान के साथ उसको दर्शन देती हैं ॥१०॥ (स्त्रग्धरा) स्मृत्वा यन्त्र सहस्रच्छदकमलमनुध्याय नाभी हृदोत्थंश्वेतस्निग्धोर्ध्वनालं हदि च विकचतां चाप्या निर्यातमास्यात् । तन्मध्ये चोर्ध्वरूपामभयदवरदां पुस्तकाम्भोजपाणि वाग्देवीं त्वन्मुखाच्च स्वमुखमनुगतां चिन्तयेदक्षरालीम् ॥११॥ मन्त्र को स्मरण करके नाभि के मध्य से स्निग्ध श्वेत पंखुरी वाले कमल, जो हृदय के पास आकर खिल गया हो तथा उसके ऊपर अभय वरदान-पुस्तक तथा कमल हाथ में धारण की हुई सम्मुख स्थित वाग्देवी के मुख से निकले हुए वर्गों की पङ्क्ति का ध्यान करें ।। (मालिनी) किमिह बहुविकल्पैर्जल्पितैर्यस्य कण्ठे लुवति५ विमलवृत्तस्थूल मुक्तावलीयम् । भवति भवति भाषे भव्य भाषा विशेषै मधुरमधु समृद्धस्तस्य वाचां विलासः ॥१२॥ ऐसे सारस्वत के विशेष कहने से क्या लाभ जिनके कण्ठ प्रदेश में ही मोती के हार के समान उत्तम पद्य हो जाते हैं तथा मधु की मधुरता के समान भाषा में मधुरता, भव्यता तथा समृद्धि होती हैं । (१३) पा. १-२ म, (१४) पा. १-२ प्रा, (१५) पा. १-२ भवति । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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