Book Title: Bauddh Darshan ka Samikshatmak Adhyayana
Author(s): Jyotsnashreeji
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 10
________________ रत्नाकरावतारिका में बौद्ध दर्शन के विविध मन्तव्यों की समीक्षा प्राक्कथन भारतीय-दर्शन में प्रमुख रूप से तीन विधाएं उपलब्ध होती हैं - (1) ज्ञान-मीमांसा (2) तत्त्व-मीमांसा और (3) आचार-मीमांसा। शोध के क्षेत्र में तत्त्व-मीमांसा और आचार-मीमांसा पर ही अधिक कार्य हुए हैं। ज्ञान-मीमांसा के क्षेत्र में यद्यपि कुछ कार्य तो हुए है, फिर भी शोध-दृष्टि से यह क्षेत्र प्रायः अस्पर्शित ही रहा है। उसमें भी जहाँ तक जैन-न्याय का प्रश्न है, सामान्यतया चार-पाँच शोधप्रबंध ही इस विधा पर लिखे गए हैं, किंतु उनके विषय के रूप में प्रमाणशास्त्र की सामान्य अवधारणा ही रही है, जैसे ज्ञान-मीमांसा, जैनदर्शन में प्रत्यक्ष की अवधारणा, जैनदर्शन में अनुमान आदि। जैन-न्याय के मूल ग्रन्थों को लेकर इस दिशा में विशेष शोधकार्य नहीं हुए हैं, जबकि जैन-आचार्यों ने जैन-न्याय से संबंधित अनेक मौलिक ग्रंथों की रचना की है। प्रस्तुत शोधकार्य में जैन-न्याय के बारहवीं-शती में निर्मित प्रमाणनयतत्त्वालोक के रत्नप्रभसरिकृत एक टीका ग्रन्थ 'रत्नाकरावतारिका' को शोध का विषय बनाया गया है। यह ग्रन्थ प्रमाणनयतत्त्वालोक पर ही एक टीका के रूप में लिखा गया है। __ प्रस्तुत शोधकार्य की आवश्यकता – 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' पर स्वयं आचार्य वादिदेवसरि ने स्याद्वादरत्नाकर नामक लगभग 84 हजार श्लोक परिमाण स्वोपज्ञ विस्तृत टीका लिखी थी, किंतु यह टीका अत्यंत जटिल और विस्तृत होने के कारण उनके ही शिष्य रत्नसिंहनंदीजी, जो बाद में रत्नप्रभसूरि कहलाए, ने मध्यम आकार की टीका के रूप में रत्नाकरावतारिका नामक टीका ग्रन्थ की रचना की। यद्यपि रत्नाकरावतारिका एक टीका ग्रन्थ है, किंतु यह अपने आप में ही जैन-न्याय का एक मौलिक-ग्रन्थ बन गया है। यह ग्रन्थ तीन खण्डों में लालभाई दलपतभाई भारतीय विद्या मंदिर, अहमदाबाद से प्रकाशित हुआ है। मूल ग्रन्थ संस्कृत-भाषा में निबद्ध है और अभी तक इसका हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में कोई अनुवाद नहीं हुआ है। इस ग्रन्थ की यह विषेषता है कि इसमें जैन-न्याय के सामान्य सिद्धान्तों के विवेचन के साथ-साथ उन सिद्धांतों के संदर्भ में जैन-मान्यताओं से भिन्न मान्यता रखने वाले Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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