Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 331
________________ बनारसीविलासः wwwimatwarm Htitutitutikattack-takikankikikatket-ttitutettititizsktotastistratandanitattitiktate गहल्वर लक्षण. जो मन लावे मरमसो, परम प्राप्ति कह खोय। . जह विवेकको वर गयो, गवर कहावै सोय ॥६॥ एक रूप हिन्दू तुरुक, दूजी दशा न कोय । ___ मनकी द्विविधा मानकर, मये एकसों दोय ॥ ७ ॥ दोऊ मुले मरममें, करे बचनकी टेक। राम राम हिन्दू कहें, तुर्क सलामालेक ॥ ८॥ इनके पुस्तक बांचिये, बेहू पढे कितेव। ___ एक वस्तुके नाम द्रय, वैसे शोभा, जेव, ॥ ९ ॥ तिनको द्विविधा-जे लखें, रंग बिरंगी चाम । _मेरे नैनन देखिये, घट घट अन्तर राम ॥ १० ॥ है गुप्त यह है प्रगट, यह वाहिर यह माहिं। जब लग यह कछु है रहा, तब लग यह कछु नाहिं११ . ब्रह्मज्ञान आकाशमें, उड़हिं सुमति खग होय । __ यथाशक्ति उद्यम करहिं, पार न पावहिं कोय ॥१२॥ गई वस्तु सोचै नहीं, आगम चिंता नाहिं। ___ वर्तमान वस्तै सदा, सो ज्ञाता जगमाहिं ।। १३ ॥ जो विलसै सुख संपदा, गये नाहि दुख होय । जो धरती बहु तृणवती, जरै भगिसों सोय ॥ १४ ॥ घन पाये मन लहलहै, गये करै चित शोक । भोजन कर केहरि लखै, वररुचि कैसो बोके ॥ १५॥ सिंह. २ बकरा.

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