Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 371
________________ Atitutikitakuttituttitu वनारसीविलासः २५१ ॥ पानीसे पानी । मूरखसेती मूरख मिलियौ,, ज्ञानीसे ज्ञानी ।। यह मिट्टी है तेरे तनमें, वादिन० ॥ ३ ॥ कहत वनारसि। ॐ सुनि मवि प्राणी, यह पद है निरवानारे । जीवन मरन किया है. सो नाहीं, सिरपर काला निशाना रे । सूझ पडेगी बुढापेपनमें, . वादिन० ॥ ४॥ नयापद ३रा कित गये पंच किसान हमारे । कित० ॥ टेक ॥ बोयो बीज खेत गयो निरफल, भर गये खाद पनारे । कपटी लोगोंसे सांझाकर, ...हुए आप विचारे ॥ १॥ आप दिवाना है जगह गह बैठो लिखलिख कागद डारे । वाकी निकसी पकरे 1 मुकद्दम, पांचो होगये न्यारे ॥ २ ॥ रुकगयो कंठ शबद नहिं । निकसत, हा हा कर्मसों हारे । वानारसि या नगर न बसिये, चलगये सींचनहारे ॥३॥ t kuttitutkukutukuttiktatatuttitut-katrkut.ttatkukkukuktituttitutekikatta वनारसीविलासके संग्रहकर्ता. नगर आगरेमैं अगरवाल आगरो जो, • गर्ग गोत आगरेमैं नागर नवलसा । संघवी प्रसिद्ध अमैराज राजमान नीके, ___ पंच बाला नलनिमैं भयो है कँवलसा ।। ताके परसिद्ध लघु मोहनदे संघइन । जाके जिनमारग विराजत धवलसा । kulekailuuttarkuttituteketitutitutituttituteket 1Y -

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