Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 372
________________ 14. KAALANA THDRANI २५२ जैनग्रन्थरत्नाकरे MAHARA... Marketokatretokatokuttrkutitutkukkut.tattitukitrkuttikattttttitutiktakaitutiktitikti ताहीको सपूत जगजीवन सुदिढ जैन, वानारसी वैन जाके हियेमें सवलसा ॥ १ ॥ समै जोग पाइ जगजीवन विख्यात भयो, __ज्ञानिनकी मंडलीम जिसको विकास है। तिनने विचार कीना नाटक बनारसीका, ___ आपके निहारिवैको आरसी प्रकाश है ॥ और काव्य धनी खरी करी है बनारसीने, सो भी क्रमसे एकत्र किये ज्ञान भास है। ऐसी जानि एक ठौर, कीनी सब भाषा जोर ___ताको नाम धरयो वो बनारसीविलास है ॥२॥ दोहा। सत्रहसै एकोत्तरै, समय चैत्र सित पाख। द्वितियामें पूरन भई, यह वनारसी भाख ॥३॥ इति श्रीकविवर बनारसीदासकृत बनारसी विलास समाप्त है htstuttituttituturkutentitattituttitutituttituttitutituttitutituttitutikekuttitut.kute - -

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