Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 346
________________ photoint kattattattoothrtistattattatutiotstatute *२२६ जैनग्रन्थरत्नाकरे tattatutotokutekt.kuttitutikattrikekottttitutituttttttt.kettitutituti विशुद्ध रूप चारित्र तासमैं शुद्ध निमित्त शुद्ध उपादान या मांति अन्य दशाजीवकी सदाकाल अनादिरूप, ताकौ व्यौरी-ज्ञान रूप ज्ञानकी शुद्धता कहिए विशुद्धरूप चारित्रकी शुद्धता कहिए । अज्ञान रूप ज्ञानकी अशुद्धता कहिए संक्लेश रूप चारित्रिकी अशुद्धता कहिये । अव ताको विचार सुनोमिथ्यात्व अवस्था विषे काहू समै जीवको ज्ञान गुण जाण रूप है तब कहा जानतु है ? ऐसौ जानतु है कि लक्ष्मी पुत्र कलत्र इत्यादिक मौसौं न्यारे हैं प्रत्यक्ष प्रमाण । हौं । 1 मरूंगो ए इहां ही रहेंगे सो जान तु है । अथवा ए जाहिंगे, हो रहूंगो, कोई काल इन्हस्यौं मोहि एक दिन विजोग है। ऐसी जानपनौ मिथ्यादृष्टीको होतु है सो तो शुद्धता कहिए. परन्तु सम्यक् शुद्धता नाही गर्भितशुद्धता जब । वस्तुकौ खरूप जानै तब सम्यक् शुद्धता सो ग्रंथिभेद बिना होई नाही परंतु गर्मित शुद्धता सौ भी अकाम निर्जरा है। भवाही जीवको काहू समै ज्ञान गुण अजान रूप है गहलरूप, ताकरि केवल बंध. है.. याही भांति मिथ्यात्व अवस्था । विषै काहू समै चारित्र गुण विशुद्धरूप है तातें चारित्रावर्ण । कर्म मंद है । ता मंदताकरि निर्जरा है ! काहूसमै चारित्र । * गुण संकलेशरूप है तातें केवल तीव्रबंध है । या भांति में करि मिथ्या अवस्थाविषे जासमै जानरूप ज्ञान है और विशुॐ तारूप चारित्र है ता समै निर्जरा है । जा समैं अजानरूप tatuturtatut.kartititatuttitutetituttituttitutxtut.sat.tutiktakent.ttinkut.k.kuttitutti

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