Book Title: Banarasivilas aur Kavi Banarsi ka Jivan Charitra
Author(s): Nathuram Premi
Publisher: Jain Granth Ratnakar Karyalay

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Page 335
________________ Frketakikat kokankskskskskskekrketskritik heatetrtes trintrete tutataterterite meter traitementstortes de tertentu ___ बनारसीविलासः २१५ ॥ wwrammarअनंत अनन्त पुद्गलद्रव्यकरि संयोगित (संयुक्त) मानने । ताको व्यौरौ, अन्य अन्यरूप जीवद्रव्यकी परनति; अन्य अन्यरूप पुद्गलद्रव्यकी परनति, ताको व्यौरी एक जीवद्रव्य जा भांतिकी अवस्थालिये नानाकाररूप परिनमैं सो भांति अन्य जीवसों मिले नाहीं । वाकी और मांति । आहीभांति अनंतानंत स्वरूप जीवद्रव्य अनन्तानंत स्वरूप अवस्थालिये वर्तहिं । काहु जीवद्रव्यके परिनाम काहु जीवद्रव्य औरस्सौं मिलइ नाहीं याही भांति एक पुद्गल परवानू एक समयमाहिं जा मांतिकी अवस्था धरै, सो अवस्था अन्य पुद्गल परवानू द्रव्यसौं मिले नाही. ताते पुद्गल (परमाणु ) द्रव्यकी भी अन्य अन्यता जाननी। अथ जीवद्रव्य पुद्गलद्रव्य एक छेत्रावगाही अनादिकालके, तामैं विशेष इतनौ जु जीवद्रव्य एक, पुद्गलपरवानू । द्रव्य अनंतानंत चलाचलरूप आगमनगमनरूप अनंताकार। परिनमनरूप बंधमुक्तिशक्तिलिये वर्तहिं । 1 अथ जीवद्रव्यकी अनन्त अवस्था तामैं तीन अवस्था । मुख्य थापी । एक अशुद्ध अवस्था, एक शुद्धाशुद्धरूप मिश्र अवस्था, एक शुद्ध अवस्था, ए तीन अवस्था संसारी जीवद्रव्यकी । संसारातीत सिद्ध अनवस्थितरूप कहिये । ॐ अव तीनहूं अवस्थाको विचार--एक अशुद्ध निश्चया Rukkutitutkutteketakikikikikikikatitutitutitutekakkakkrkukkuttitutikutkukutituatataka ZuckerRukkakka

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