Book Title: Balmanorama
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Page 774
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 772 सिद्धान्तकौमुद्याम् कर्तरि / वर्म / चर्म / 'द्यच्कः' किम् / अणिमा / महिमा। ‘अकर्तरि' किम् / ददाति इति दामा // 147. 'ब्रह्मन्पुंसि च' / अयं ब्रह्मा / इदं ब्रह्म // 148. 'नामरोमणी नपुंसके' / 'मन्यच्क:-' इत्यस्यायं प्रपञ्चः // 149. 'असन्तो यच्कः' / यशः / मनः / तपः / यच्कः' किम् / चन्द्रमाः // 150. 'अप्सराः स्त्रियाम् / एता अप्सरसः / प्रायेणायं बहुवचनान्तः // 151. 'त्रान्तः' / पत्तम् / छत्तम् // 152. 'यात्रामात्राभस्त्रादंष्ट्रावरत्राः स्त्रियामेव' // 153. 'भृत्रामित्रछातपुत्रमन्त्रवृत्रमेष्टाः पुंसि' / अयं भृत्रः / न मित्रममित्रः / 'तस्य मित्राण्यमित्रास्ते' इति माघः / 'स्वाताममित्रौ मित्रे च' इति च / यत्तु 'द्विषोऽमित्रे' (सू 3111) इति सूत्रे हरदत्तेनोक्तम्-'अमेर्द्विषदित्यौणादिक इत्रच् / अमैरमित्रं मित्रस्य व्यथयेत्' इत्यादौ मध्योदात्तस्तु चिन्त्यः / नञ्समासेऽप्येवम् / परवल्लिङ्गतापि स्यादिति तु तत्र दोषान्तरम्' इति, तत्प्रकृतसूत्रापर्यालोचनमूलकम् / खरदोषोद्भावनमपि 'नो जरमरमित्रमृताः' (सू 3850) इति षाष्ठसूत्रास्मरणमूलकमिति दिक् // 154. 'पत्रपात्रपवित्रसूत्रच्छत्राः पुंसि च' // 155. 'बलकुसुमशुल्बयुद्धपत्तनरणाभिधानानि' / बलं वीर्यम् // 156. 'पद्मकमलोत्पलानि पुंसि च' / पद्मादयः शब्दाः कुसुमाभिधायित्वेऽपि द्विलिङ्गाः स्युः / अमरोऽप्याह'वा पुंसि पद्मं नलिनम्' इति / एवं च 'अर्ध दिसूत्रे तु जलजे पद्म नपुंसकमेव' इति बृत्तिग्रन्थो मतान्तरेण ज्ञेयः // 157. 'आहवसङ्ग्रामौ पुंसि' // 158. 'आजिः स्त्रियामेव' // 159. 'फलजातिः' / फलजातिवाचिशब्दो नपुंसकं स्यात् / आमलकम् / आम्रम् // 160. 'वृक्षजातिः' / स्त्रियामेव क्वचिदेवेदम् / हरीतकी // 161. 'वियजगत्सकृत्शकन्पृषच्छकृद्यकृदुदश्वितः' / एते क्लीबाः स्युः // 162. 'नवनीतावतानृतामृतनिमित्तवित्तचित्तपित्तव्रतरजतवृत्तपलितानि' // 163. 'श्राद्धकुलिशदैवपीठकुण्डाङ्गदधिसक्थ्यक्ष्यस्थ्यास्पदाकाशकण्वबीजानि'। एतानि क्लीबे स्युः // 164. 'दैवं पुंसि च' / दैवम्-दैवः // 165. 'धान्याज्यसस्यरूप्यपण्यवर्ण्यधृष्यहव्यकव्यकाव्यसत्यापत्यमूल्यशिक्यकुड्यमद्यहर्म्यतूर्यसैन्यानि' / इदं धान्यमित्यादि / 166. 'द्वन्द्वबर्हदुःखबडिशपिच्छबिम्बकुटुम्बकवचवरशरबृन्दारकाणि' // 167. 'अक्षमिन्द्रिये' 'इन्द्रिये' किम् / रथाङ्गादौ मा भूत् // इति नपुंसकाधिकारः / 168. 'स्त्रीपुंसयोः' / अधिकारोऽयम् // 169. 'गोमणियष्टिमुष्टिपाटलिवस्तिशाल्मलित्रुटिमसिमरीचयः' / इयमयं वा गौः // 170. 'मृत्युसीधुकर्कन्धुकिष्कुकण्डुरेणवः' / इयमयं वा मृत्युः // 171. 'गुणवचनमुकारान्तं नपुंसकं च' / त्रिलिङ्गमित्यर्थः / पटु-पटुःपट्टी // 172. 'अपत्यार्थतद्धिते' / औपगवः-औपगवी // __ इति स्त्रीपुंसाधिकारः / 173. 'पुनपुंसकयोः' / अधिकारोऽयम् // 174. 'घृतभूतमुस्तक्ष्वेलितैरावतपुस्तकबुस्तलोहिताः' / अयं घृतः / इदं घृतम् // 175. ' शृङ्गार्घनिदाघोद्यमशल्यदृढाः' / अयं शृङ्गः। इदं शृङ्गम् // 176. 'व्रजकुञ्जकुथकूर्चप्रस्थदार्माधर्चदर्भपुच्छाः ' / अयं व्रजः / इदं व्रजम् // 177. 'कबन्धौषधायुधान्ताः' / स्पष्टम् // 178. 'दण्डमण्डखण्डशवसैन्धवपार्थाकाशकुशकाशाङ्कुशकुलिशाः' / एते पुनपुंसकयोः स्युः / 'कुशो रामसुते दर्भे योके द्वीपे कुशं For Private And Personal Use Only

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