Book Title: Atmaprabodh Author(s): Jinlabhsuri, Buddhisagar, Publisher: Jindattsuri Gyanbhandar View full book textPage 6
________________ ४२ पृहम् पंक्तिः ११. श्रीआत्मप्रबोधः ॥४॥ पृष्ठम् पंक्तिः भादम् शुद्धम ५४. धूवु ५५ 1 तहा भणियं २ तहा भणियं । ५५ १ चंदनाइनादिना चंदनादिना नेवेन सुखम् मवसर्पि तीर्थ उदिपत्र ॥४॥ * म्कानि नेवज पर प्रभवः प्रसाद करणीय MAA पृष्ठम् पंक्तिः भशुद्धम् तीध ४२ १३ रह ५३ ५ माणह ४६ ५ ऽमिति णाधिक भन्स संप्राप्त स्थाम संजता तष्ट नविनैव चावटि दूसयति नेवज सुगधो ५ सुरदुखं 4 नेवज तीर्थ भोयरइ भाणाह ऽयमिति णाधिकं भग्यस संप्राप्तं स्थाने म संमाता ६३ ११ ६६१९ पीलिजंतो तीर्यकर ५६ १२ विधात व्यय ५८ २ कांक्ष ५९ १२ सोऽपि निमित्त महरिको धार १ स्वामिना ६. सतं ११ । मिहितः नवीनैव मधुरम भवसर्पि भवसर्पि तीर्य म्लनि प्रभावः प्रप्तादं कर्णीय कर्तु पस्यौ निबेदन स्थाषित विस्मृत्य बुद्धो बोभ्यः पीलिजतो तीर्थकर विधात ब्यब कांक्षा सोऽवशिष्ट निमित्तं महर्दिको धारक स्वामिनः सताः मिकिताः ६४ ११ ६४ १५ ६५ १. पतस्थौ निवेदन स्थापित बिस्कृति हृद्धयो बोभ्याः क्षीराभव कथी हानतरं दूषयति नेवेज सुगंधो सुग्सुक्क नेदेज ६५ १२ १५ ५ धी हावतरं अंम Jain Education Interna l ६. अम For P ate & Personal use only waingPage Navigation
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