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મ હાવી ૨
નિર્વાણ
આત્માના અલૌકિક પરમપૂજ્ય દિવ્ય દેહના દર્શન કરીને પરમશાંતિનું પાત્ર બન્યા નથી અને એ વિકાસનાં વિકારનાશક વચનેમાંથી એક પણ વચન શ્રીમુખે સાંભળવારૂપ સદ્ભાગ્યને ભેટયા નથી તેવા આ વર્તમાન કાળના વિવાસિયે માટે તે પ્રભુ નિર્વાણને દિવસ કેવળ શેકપ્રદ જ ગણાય, અને એ હેતુથી શાસૂચક પ્રવૃતિ આદરી નિર્વાણ દિન પાળ જોઈએ.
गुरुमहिमा तुम जीव कोई अवतारी हो मेरे वल्लभ गुरु उपकारी हो. तू बालापन में जोग लिया घर मात पिता को छोड दिया संसार से नाता तोड़ दिया तुम योगी और ब्रह्मचारी हो । कलिकालकल्पतरु कहलाये अज्ञानतिमिरहर मन भाये हम धन्य हुए दर्शन पाये तुम ज्ञान शील भंडारी हो । तुम योगी कोई निराले हो निज आन के जो मतवाले हो गुरु नाम पै मिटनेवाले हो गुरु नाम पै तुम बलिहारी हो । संसार का सचमुच वल्लभ है भरा प्रेम से दिल जो छलाछल है तूमेरी मस्जिद मकतब है तुम मंदिर और पूजारी हो । श्री संघ पैते की छाया रहे कल्पो तक तेरी काया रहे चरणों में दिल यह लुभाया रहे तुम काम के तारणहारी हो ।
गुरुस्तुति मेरी अरजी गुरुजी निभानी पड़ेगी यह मोहनी सी सूरत दिखानी पड़ेगी जलाती है हम को यह पापों की अग्नि वह उपदेश-जल से बुझानी पड़ेगी मुहब्बत का रस्ता जो भूले हैं भाई उन्हें प्रेम शिक्षा सिखानी पड़ेगी खिवैया तुम्ही हो पकड़ लेना बश्या मेरी पार नैया लगानी पड़ेगी यह वल्लभ ही आतम का पट्टधर है अच्छा उन्हें आके गर्दन झुकानी पड़ेगी उसे औंपा था आतमने अबकुछ कहानी यह सच्ची सुनानी पड़ेगी
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