Book Title: Atmanand Prakash Pustak 025 Ank 05 Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ૧૪ www.kobatirth.org શ્રી આત્માનંદ પ્રકારા. गुण गौरवं त्वदीयं, गातुं नैव मदीयम् । हृदयं जिनेश शक्तं, लोकान्तरे प्रसक्तम् । पतितो भवावेऽहं दुर्व्याधि वारि भरिते । ममपालनं कुरुत्वं, ह्यधुनोज्झितं ममत्वं । अजिताsब्धि सूरिरीश ! ध्यानेऽस्मि तत्परोऽहम् । भगवंस्तवैव वैरि-व्रज नाशनैकदृष्टिः ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सर्वा-४ सर्वा-५ सर्वार्थ- ६ ले० श्रजित. ( लेखक -पच-पी० पोरवाल सादरी - मारवाड ) ॥ राग - गजल - ताल - धमाल ॥ शरन जिनवरकी जाने मे, जगत छूटे तो छूटन दे । दान दुःखियों को देनेसे, द्रव्य खूटे तो खूट न दे || टेर || For Private And Personal Use Only कठिन माया के फांसी में, बन्धा है सर्व संसारा । भले जो मोहकी रस्सी, अगर टूटे तो टुटन दे ॥ १ ॥ करो सेवा जाच्यो साधुओ की, सुनो प्रभु नामकी चरचा । विषयकी आस दुनियोसे, अगर भागे तो भागन दे ।। २ ।। हमेशा जायकर बैठो, जहां सतसंग होता है । सुनो नित ज्ञानकी चरचा, जगत रूठे तो रूठन दे ॥ ३ ॥ काज लाज तज करके, शरण वितरागकी लीजे । हिराचन्द्र जगत तुझसे, अगर लाजे तो लाजन दे ॥ ४ ॥Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32