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શ્રી આત્માનંદ પ્રકારા.
गुण गौरवं त्वदीयं, गातुं नैव मदीयम् । हृदयं जिनेश शक्तं, लोकान्तरे प्रसक्तम् । पतितो भवावेऽहं दुर्व्याधि वारि भरिते । ममपालनं कुरुत्वं, ह्यधुनोज्झितं ममत्वं । अजिताsब्धि सूरिरीश ! ध्यानेऽस्मि तत्परोऽहम् । भगवंस्तवैव वैरि-व्रज नाशनैकदृष्टिः ॥
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सर्वा-४
सर्वा-५
सर्वार्थ- ६
ले० श्रजित.
( लेखक -पच-पी० पोरवाल सादरी - मारवाड ) ॥ राग - गजल - ताल - धमाल ॥
शरन जिनवरकी जाने मे, जगत छूटे तो छूटन दे । दान दुःखियों को देनेसे, द्रव्य खूटे तो खूट न दे || टेर ||
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कठिन माया के फांसी में, बन्धा है सर्व संसारा । भले जो मोहकी रस्सी, अगर टूटे तो टुटन दे ॥ १ ॥ करो सेवा जाच्यो साधुओ की, सुनो प्रभु नामकी चरचा । विषयकी आस दुनियोसे, अगर भागे तो भागन दे ।। २ ।। हमेशा जायकर बैठो, जहां सतसंग होता है । सुनो नित ज्ञानकी चरचा, जगत रूठे तो रूठन दे ॥ ३ ॥ काज लाज तज करके, शरण वितरागकी लीजे । हिराचन्द्र जगत तुझसे, अगर लाजे तो लाजन दे ॥ ४ ॥