Book Title: Atmanand Prakash Pustak 013 Ank 10
Author(s): Jain Atmanand Sabha Bhavnagar
Publisher: Jain Atmanand Sabha Bhavnagar

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Page 5
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ઐતિહાસિક સાહિત્ય. ૨૭ * ॥ स्वस्ति श्री आदिजिनं प्रणम्य अहम्मदावादथी पं0 देवचंद लिषतं श्री सूरतविंदरे सुश्राविका जिनागमरूचि बाई जानकीबाई हरषबाई प्रमुख स्वरूप धर्मरूची जीव योग्यं धर्मनान वांचज्योजी. अत्र साता में अपरंच तुम्हे यथार्थ ज्ञानी वीतराग सर्वझ सर्वदर्शी अरिहंत परमात्मा यै प्रगट कर्यो सिघात्मानै जे संपूर्ण नीपनो ने ते सर्व जीवने असंख्यात प्रदेशें व्याप्य व्यापकपणे अनादि अनंत संबंध रह्यो 3 ते स्वनावधर्मनी रूची पणे रह्यो जे धर्म ते आस्मानो अन्वय स्वनाव में सहज अकृत स्वरूप ने ते उच्चरग धर्म डे, जाणवो देषवो ते स्वकार्य में. तेहनी प्रदत्ति ते रमणादिक । ते शुछ धर्म जेहने समरण प्रगट्यो ते देवतत्त्व ते संपूर्ण धर्मना रहा ये संपूर्ण धर्मी सिम परमात्मानो बहुमान करवो ते साधन परिणतिने संपूर्ण थवाना कारणपणा माटे तेहनें धर्म कहीयें मूल वस्तु धर्मे स्वस्वनाव तेहज धर्म ए श्रछा करवी जे बाह्य प्रवृत्ति योगनी आचरणी तेहनें धर्म माने तेहना कह्यामें सिक ते धर्म रहित थायें ते माटें कारण ते मूत्र धर्मथी जिन्न में यद्यपि उपादान कारण आत्मपरिणति में पिण साधननी रीत ते सिम्मानथी तेतलो ने [द] 3. दशमा गुणगणाना मुनीने श्रीजगवतीसूत्रे उस्सत्तं रियति इम कह्यो में तो जे स्वरूपरुचि विना सातादि गारव माटें संयम श्रुताच्यासने संसार हेतु जे ए आचारांगे धूताध्ययने चोर्थे उद्देशे कह्यो ते माटें पूरण सिघावस्थायें जे उतो पामीये ते धर्म जाणवो. तेहनी रूचि जे आगम प्रमाणे पोता पागजावी गुण तथा जदीक गुणी अनुजायी करवो ए साधकता में ते करतां संपूर्ण धर्म प्रगटें तेहनो उद्यम करघो ए सर्व जीवने हित में ए आत्मसत्ता प्रगट करवा माटें परमेश्वर परमपुरुष परमानंदमयी संपूर्ण आत्मसत्ताऽजोगी सहज आत्यंतिक एकांतिक ज्ञानानंदनोगी परमात्मानो बहुमान ध्यान करवो. आत्मिक शक्ति कर्ता जोक्तादिक कारक चक्र ते विनावरूप कार्य कापणे अशुध संसार कर्तापणे करतां अनंत पुद्गन-परावर्त वही गया ते क्षयोपशमी चेतनादिक शुफ निरंजन निरामय निछ निष्पन्न परमात्मगुणानुयायीक ते स्वरूप प्रगट करवाना कारण थया ते पछी स्वरूपावलंबी थया एतने परम सिचिताना कारण थायें ते माटे प्रथम प्रशस्तालंबी थई स्वरूपाखंबी पणे परणमी स्वरूप निष्पत्ति करवी ए हित जाणवोजी तथा 5 * આ પત્ર મૂળ નકલની ખાસ પ્રતિકૃતિ જ છે. તેમાં જોડણી વિગેરેમાં કાંઈ પણ ફેરફાર કરવામાં આવ્યું નથી. For Private And Personal Use Only

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